सांता क्लॉज को एक चिट्ठी
प्रिय सांता क्लॉज जी,
पांय लागूं..
इधर कुशल सब भांति सुहाई, उधर कुशल राखे रघुराई। यहाँ ठिठुरन ने बाकायदा मोर्चा खोल रखा है। उम्मीद है कि आप अपने रेनडियरों के साथ स्वर्गीय बर्फ़ीले इलाक़ों में आराम से फरमाइशें पूरी कर रहे होंगे।पाती लिख दीनी ,आपको अपना जानकार । मन में थोड़ी-सी घबराहट भी है कि कहीं मेरी अर्ज़ियाँ आपकी “नॉट-सो-नाइस” लिस्ट में न चली जाएँ। यहाँ न बैंकों की पॉलिसी टिकती है, न सरकार अपनी नीतियों पर कायम रहती है—जब चाहे, जहाँ चाहे, बेक हो लेती है। ऐसे में अब सिर्फ़ आपकी “बैग पॉलिसी” पर ही भरोसा बचा है।
आशा है आपकी स्लेज दुरुस्त चल रही होगी, रेनडियरों को समय पर चारा मिल रहा होगा और आपके लिस्टेड नाईस लोगों कि खुशियों के लिए आवंटित सालाना बजट में कोई डेफिसिट नहीं होगा।
सुना है आप देते हैं तो जुराब भर कर देते हैं l आप आएँ तो मेरे घर के बाहर टंगे मोज़ों पर ज़रूर नज़र-ए-इनायत करें। यह वही जोड़ी है जो कई बरसों से “तलाक़शुदा जीवन” जी रही है। दोनों के पार्टनर इन्हें छोड़कर कब के विदा हो चुके हैं। कई दिनों से विधवा जीवन का दंश झेलते-झेलते ये मोज़े अलमारी में पड़े-पड़े सड़ने लगे थे। श्रीमती जी इन्हें फ़र्श पोंछने के काम में लेना चाहती थीं, लेकिन मैंने इन्हें घर के बाहर टाँग दिया है। उम्मीद है, इन मोज़ों की बदबू आपके रेनडियरों को मेरे घर की सही लोकेशन खोजने में भरपूर मदद करेगी।
कृपया इन मोज़ों को भारतीय मुद्रा से भर दीजिए। लेकिन ध्यान रहे—वही मुद्रा हो जो अगले पचास साल तक चलन में बनी रहे। ऐसा न हो कि आप 1000 और 500 के पुराने नोटों को मंदिर के दानपात्र समझकर देकर चलते बनें ।
और अगर यह सब मुमकिन न हो, तो मेरे नाम पर एक छोटा-सा स्विस बैंक अकाउंट ही खुलवा दीजिए। पासवर्ड सिर्फ़ मुझे ही बताइए, वरना श्रीमती जी इसे अपनी ‘किटी पार्टी’ की योजनाओं में उड़ा देंगी।
वैसे, अगर आपको भी कभी रॉबिनहुड बनने का मन करे, तो हमारे देश के नेताओं और भ्रष्टाचारियों के स्विस अकाउंट में पड़ा ब्लैक मनी ग़रीबों में बाँट दीजिए। और नहीं तो कम-से-कम यह 15 लाख वाला रोना-धोना तो बंद हो जाएगा। इससे देश की राजनीति के पहियों में जमी जंग कुछ कम होगी और शायद यह पहिया आगे भी खिसके।
क्या आप एक ऐसा जादुई रिमोट ला सकते हैं, जो बिजली का बिल खुद-ब-खुद आधा कर दे? सच मानिए, सांता जी—जब भी बिजली विभाग का आदमी गेट पर दस्तक देता है, मेरी साँसें वैसे ही अटक जाती हैं जैसे बिजली कटते ही पंखा।
अब ख्वाहिश यह भी है कि एक “ऑल-इन-वन” रिमोट आ जाए, जो ज़रूरत पड़ने पर श्रीमती जी को भी म्यूट और अनम्यूट कर सके। इसका कनेक्शन मोबाइल से हो, ताकि मिस कॉल देकर इसे ढूँढा जा सके। ऐसा रिमोट जो टीवी, मोबाइल, बीवी, बच्चे और बॉस—सबको एक साथ ऑपरेट कर दे, तो फिर क्या कहने! ख्वाहिशें भी बेलगाम घोड़े की तरह होती हैं—एक बार लगाम ढीली की नहीं कि दौड़ पड़ती हैं।
आपसे यह भी विनती है कि एक टाइम मशीन दे दें, जो मुझे हर सुबह ट्रैफिक को चकमा देते हुए सीधे ऑफिस पहुँचा दे। बॉस की घूरती नज़रों से बचना आजकल तिहाड़ जेल से फरार होने जैसा कठिन लगता है। ऑफिस की मीटिंग्स से ज़्यादा उबाऊ चीज़ शायद ही कोई हो। इसलिए कृपया एक क्लोनिंग मशीन भी भेज दीजिए, जिससे मेरा डुप्लीकेट बॉस की मीटिंग अटेंड कर ले और मैं इत्मीनान से चाय पी सकूँ। इस मशीन में यह विशेष फ़ीचर ज़रूर हो कि क्लोन सिर्फ़ “हाँ-हूँ” करता रहे और बॉस पूरी तरह संतुष्ट रहें।
मोबाइल के ऐप्स तो मेरे पास हैं—बस उनकी लाइफ़टाइम वैलिडिटी करवा दीजिए।
कार भी है—बस लाइफ़टाइम के लिए टैंक फुल करवा दीजिए।
डाइनिंग टेबल भी है—बस परिवार को उस पर एक साथ बैठकर खाना खिलवा दीजिए।
मेरे पड़ोसी के बच्चे रात को ढोल बजाकर मुझसे निजी दुश्मनी निकालते हैं। अगर उनके ढोल में साइलेंसर फिट हो जाए, तो आपकी यह मेहरबानी मैं सात जन्मों तक याद रखूँगा।
एक ऐसा वॉर्डरोब भी दे दीजिए, जिसमें हर मौके के लिए फिट बैठने वाले कपड़े हों—शादी, ऑफिस मीटिंग या बच्चों का स्कूल फंक्शन। वजन बढ़े तो कपड़े अपने आप बढ़ जाएँ, घटे तो कपड़े ख़ुद-ब-ख़ुद सिकुड़ जाएँ।
सांता जी, हमारे घर की हर चीज़ हमेशा ग़लत मौसम में ही ख़राब होती है—पंखा गर्मियों में, गीजर सर्दियों में और वाई-फाई तो हर समय। कृपया ऐसा सिस्टम दीजिए, जिसमें घर की सारी चीज़ें ख़ुद ही रिपेयर हो जाएँ और हमें सर्विस कॉल सेंटरों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाना न पड़े।
एक और छोटी-सी गुज़ारिश है—जब आप आएँ तो कृपया मुझ ग़रीब के दरवाज़े से ही आएँ। कहीं ऐसा न हो कि मुझे “छप्पर फाड़ खुशी” देने के चक्कर में मेरे इस आधे-अधूरे, टूटे-फूटे झोंपड़े की छत ही फाड़ दें। फिर आप जितना देंगे, सब मरम्मत में ही चला जाएगा।
आपका अपना,
ख्वाहिशों का मारा
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