शब्दों में राष्ट् का स्पंदन , कलम में अटूट जिम्मेदारी,
राजनीति में रस घुल जाये ,जब बोले अटल बिहारी।
कटु समय में भी भाषा संयम से ओतप्रोत भारी ,
विरोधी भी सर झुकाने लगे, जब बोले अटल बिहारी ।
सत्ता आई, सत्ता गई, पर लेखनी रही जारी,
लोकतंत्र की सांसों में बसते रहे अटल बिहारी।
कवि मन और राजधर्म का अद्भुत था मेल मिलाप ,
सत्ता की हर चाल से ऊपर अडिग अटल बिहारी।
लफ़्ज़ों में वतन की ख़ुशबू , और देश प्रेम का जज़्बा ,
सियासत भी अदब बन गई जब बोले अटल बिहारी।
तेज़ आँधियों में भी लहजा अदब का झुका नहीं जिनका ,
मुख़ालिफ़ भी झुक गए जब सामने आए अटल बिहारी।
तख़्त बदले , मौसम बदले, दौर धूप छाँव का बदला ,
क़लम ने नहीं छोड़ा सच, चलते रहे अटल बिहारी।
जंग की ज़बान से ऊँची थी गुफ़्तगू की फ़नकारी,
दुश्मन भी मान गया आख़िर ऐसे थे अटल बिहारी।
तारीख़ लिखेगी अदब से यह एक अलग सी क़िस्सेदारी,
“असीमित “दिलों ने संजोए रखा है , नाम अटल बिहारी।
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