कालिदास: इतिहास और आख्यान के बीच डॉ मुकेश 'असीमित' November 3, 2025 शोध लेख 0 Comments “If there is any beauty in my speech, it is not mine — it is the gift of tradition and divine grace.” “Kalidasa’s journey is… Spread the love
रिस्क और रिश्वत-हास्य व्यंग्य Ram Kumar Joshi November 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “Rishvat is based on risk” — this new law of modern Indian economics explains it all. Whenever risk rises, the bribe amount inflates proportionally. From… Spread the love
गरमा-गरम फुल्के की तलाश डॉ मुकेश 'असीमित' October 30, 2025 लघु कथा 0 Comments मध्यमवर्गीय घरों में शादी अब दहेज या कुंडली से नहीं, फुल्का-कला से तय होती है। बब्बन चाचा का सपना था — एक ऐसी बहू जो… Spread the love
दोस्ती की सीमा और फेसबुक का परिवार नियोजन कार्यक्रम डॉ मुकेश 'असीमित' October 30, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments फेसबुक अब भावनाओं पर भी पाबंदी लगाने वाला पहला सोशल प्लेटफॉर्म बन गया है। पाँच हज़ार दोस्त पूरे होते ही दिल कहता है “Accept,” और… Spread the love
नासदीय सूक्त की दार्शनिक व्याख्या डॉ मुकेश 'असीमित' October 28, 2025 Darshan Shastra Philosophy 0 Comments ऋग्वेद का नासदीय सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विश्व के सबसे प्राचीन दार्शनिक चिंतन में से एक है। यह कहता है कि जब न अस्तित्व… Spread the love
विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता डॉ मुकेश 'असीमित' October 21, 2025 हिंदी लेख 0 Comments स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में… Spread the love
गालों की लाली- हो गई गाली Ram Kumar Joshi October 20, 2025 संस्मरण 0 Comments “कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में… Spread the love
जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा Vivek Ranjan Shreevastav October 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “जेन ज़ी की ‘लोल भाषा’ ने व्याकरण के सिंहासन को हिला दिया है। अब भाषा नहीं, भावना प्राथमिक है। अक्षरों का वजन घट रहा है,… Spread the love
जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा डॉ मुकेश 'असीमित' October 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके… Spread the love
संघ-साहित्य की विरासत, विचार की निरंतरता और आधुनिक भारत में उसकी वैचारिक प्रासंगिकता डॉ मुकेश 'असीमित' October 17, 2025 शोध लेख 0 Comments संघ-साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा की जीवंत साधना है। यह परंपरा के मौन और आधुनिकता के संवाद के बीच बहने… Spread the love