Vidya Dubey
Jul 5, 2025
Hindi poems
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यह कविता स्त्री के संघर्ष, सहनशीलता और उसकी शक्तियों का गान है। माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, देवी — हर भूमिका में वह समाज की नींव है। वह कमजोर नहीं, संसार की रचयिता है। उसकी जात सिर्फ 'औरत' नहीं, एक सम्पूर्ण सृष्टि है। यही उसका आत्मघोष है: हां मैं एक औरत हूं।
Babita Kumawat
Jun 25, 2025
Hindi poems
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हिंदी केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा की पहचान है। यह भाषा नहीं, सृजन की प्रेरणा है — जो प्रतिभा को आकार देती है और अज्ञान को मिटाती है। हिंदी का इतिहास, उसका सौंदर्य, और उसका वैश्विक व्यक्तित्व, हमें गर्व से भर देता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 24, 2025
Hindi poems
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एक मुखौटा जो क्रांति का नाम लेता है, और एक जाम जो सिंगल मॉल्ट से छलकता है।
डॉ. मुकेश 'असीमित' की यह तीखी व्यंग्यात्मक कविता उन स्वघोषित चिंतकों पर करारा कटाक्ष है — जो शब्दों से सर्वहारा का राग अलापते हैं, पर जीवन में सुविधाओं के सहारे सांस लेते हैं।
"बेसहारा सर्वहारा चिन्तक" सत्ता, दिखावे और वैचारिक दोगलेपन की उस रंगभूमि पर प्रहार करती है, जहाँ विमर्श क्लाइमेट चेंज और स्त्री अधिकारों पर होता है, पर ए.सी. और इंटर्न की सुविधा भी नहीं छोड़ी जाती।
यह रचना नारे और नैतिकता के बीच के खोखलेपन को उजागर करती है — तीखी, मार्मिक और असीमित शैली में।
Dr. Mulla Adam Ali
Jun 23, 2025
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जंगल केवल पेड़ों और जानवरों का घर नहीं, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह हरियाली, शांति, और जैव विविधता का प्रतीक हैं, जो धरती को संतुलन और सांसें प्रदान करते हैं। लेकिन आज मानवीय लालच और विकास की अंधी दौड़ ने इन प्राकृतिक धरोहरों को संकट में डाल दिया है। प्रस्तुत कविता “जंगल […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 7, 2024
Hindi poems
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गणेश चतुर्थी विशेष… करहूँ स्तुति श्री गणपति, दीन दुखी के नाथ। दारुण दूर करहुं, तुम हो दीनों के साथ॥ विघ्न विनाशक नाम तुम्हारा, शुभ करहुं हर बार। दीनदयालु, कृपा बरसाओ, जग में हो उजियार॥ करबो वंदन पारवती सुत की, मंगल मूर्ति विशाल। विघ्न विनाशक नाम तुम्हारो, सिद्धि दाता प्रतिपाल॥ मूषक वाहन, मोदक भोगी, भाल चंद्र […]
Mahadev Prashad Premi
May 1, 2024
Hindi poems
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जब रिश्तों में स्वार्थ और लोभ का ज़हर घुल जाता है, तब वर्षों से सहेजे संबंध भी टूटने लगते हैं। मनुष्यता की नींव पर जब निजी लाभ हावी हो जाता है, तो नाते सिर्फ समझौते बनकर रह जाते हैं। यह पंक्ति आज के स्वार्थी सामाजिक परिवेश की सच्चाई बयां करती है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Mar 26, 2024
Hindi poems
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अंतर्द्वंद का यह संसार, मन के विराट आकाश में, जहाँ चिंतन की गहराइयों में बसती है एक अनकही पीड़ा। मनुष्य की अनगिनत अपेक्षाएँ, समाज के मानदंडों के बीच, उलझती, घुलती, बिखरती, एक अनसुलझी पहेली की तरह। इस द्वन्द्व की गलियों में, जहाँ हर कदम पर एक नई दुविधा, मन के सिंहासन पर बैठा, एक अनदेखा, […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Mar 19, 2024
Hindi poems
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“तेरा दुःख तेरा ही होगा “इस कविता के माध्यम से, यथार्थ को अपनाने और स्वयं के साथ खड़े होने की प्रेरणा देने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है, यह आपको अपने दुखों से लड़ने और जीवन की सच्चाइयों को स्वीकार करने की शक्ति देगा। जीवन की राहों में दुःख के कांटे जब भी बिछे […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Mar 18, 2024
Book Review
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अहसास की इस विस्तृत वादी में, जहाँ कण कण में सुकून का सागर छिपा है,वहाँ एक परिंदा, अपने अस्तित्व की छाया में, स्वच्छंद उड़ान भरना चाहता है । क्षितिज की ओर ताकते हुए, उसके पंख स्वर्णिम रश्मि से आलोकित होते, उसकी हर उड़ान में एक नया जुनून, हर लम्हा एक नई महक लिए होते। पलकें […]
Mahadev Prashad Premi
Aug 4, 2021
Hindi poems
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दीपक मिट्टी का बना हो,या सोने का,रोशनी कितनी देता है,सवाल है इस वात का,कोई धनी हो या गरीव,मुसीवत में कितना हो करीव,महत्व है इस वात का,फूलों से महक,मेहनत भरी क्यारियों से ही आती है,क्रतिम फूलों से तो केवल,प्रदर्शनी ही लगाई जाती है।