आज की मेरी रचना दौलत रुपी मिथ्या भुलाबे में जो मानव जगत अपनी बहुमूल्य निधि अपना परिवार और मानव धर्म को भूल रहा है. उस दौलत के मिथ्या और छन भंगुर होने का अहसास कराता है .यहाँ दौलत शीर्षक से कविता कुंदिली विधा में रचित है जिसके ६ चरण है,सामान्यतया मेरी जितनी भी रचना है उनके ८ चरण है.
“दौलत”
दौलत का नहिं कीजिये,इतना तुम सम्मान,
नदी नीर वहता रहे,टिकता नहीं अभिमान,
टिकता नहीं अभिमान,कभी विश्वास न करिये,
हिल मिल सव से चाल,सीख ये चित में धरिये,
“प्रेमी”वो ही करो, बात कछु हिय में तौलत,
नहीं किसी के साथ,चली अब तक ये दौलत।,
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