दोस्ती की सीमा और फेसबुक का परिवार नियोजन कार्यक्रम
मुझे आजकल बड़ी पीड़ा हो रही है — कुछ फ्रेंड रिक्वेस्ट्स जो मेरी सूची में पेंडिंग पड़ी हैं, उन्हें मैं एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा। ऐसा लग रहा है जैसे दोस्ती के स्यन्वर में बीचों बीच मैं अकेला “एक अनार सौ बीमार की तरह” पड़ा हूँ, और बाक़ी सारे अर्जुन अपने बाण फेसबुक के सर्वर पर चला रहे हैं। वैसे यह सीन देखकर ही “दिल बहलाने के लिए ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है, “ वाली कुछ फीलिंग आती है l पर हाल-ए-नजारा कुछ यूं है कि मैं दोस्ती के हाट में खड़ा हूँ, ऐसा लग रहा है जैसे दोस्ती की ब्लैक फ्राइडे सेल लगी हुई है l दोस्ती के इस भवसागर में अपनी छोटी सी नौका लिए एक किनारे पर खड़ा भंवर को निहार रहा हूँ l पर जैसे प्यार का दुश्मन जगा सारा ,ऐसी ही फेसबुक दोस्ती पर भी फ्रेंड लिमिट रीच्ड की अदृश्य दीवार बीच में खड़ी कर दी गई हो — “नहीं नहीं, अब और मिलन नहीं हो सकता!”
फेसबुक अब दोस्ती भी मोबाइल के नए वर्ज़न की तरह बेचने लगा है — “ले लो नया अपडेट, दोस्ती के साइड इफ़ेक्ट से पूरी तरह सुरक्षित हैं!” मसलन टेगियों से छुटकारा ,घूंघट ओढ़े बैठे दोस्तों से छुटकारा जैसा फीचर l फेसबुक वालों ने भी शायद सरकार की नीतियों से प्रेरणा ले ली है। अब वही हाल दोस्ती का है जो परिवार नियोजन का हुआ था — लिमिट लगा दी गई है, “पाँच हज़ार से ज़्यादा दोस्त नहीं रख सकते।”
अरे भाई, ये भी कोई बात हुई? दोस्ती कोई जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम थोड़े ही है! मुझे तो लगता है कि मार्क ज़ुकेनबर्ग कहीं किसी सेमिनार में बोले होंगे — “ओवरपॉप्युलेशन नॉट ओनली इन कंट्री, बट इन फ्रेंडलिस्ट टु!” और तभी से ये आदेश लागू कर दिया गया।
अब सोचिए, हम तो दोस्ती के लिए इतने उतावले थे की आँख मूंदकर दोस्ती कबूल की ,न रंग देखा न रूप ,न वर्ण न क्षेत्र ,न कद न काठी ,न स्त्री पुरुष का भेद,न कोई उम्र के सीमा ,जो भी राह में मिला हम उसी के हो लिए ।”
इस धडाधड चल रही दोस्ती-बाजी की दास्तान में भांजी तब लगी जब पता चला की किसी आदरणीय का दोस्ती का हसीन प्रस्ताव आया और हम है की उसे एक्सेप्ट ही नहीं कर पा रहे , वो समझे की हम इग्नोर कर रहे और हम हैं की क्या बताएं उन्हें हमारे दिल का हाल ,जुस्तजू हमें भी है बस हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे, लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता हैl
मेरा तो बस यही कहना है कि फेसबुक की ये सीमा किसी “बहुपत्नी-प्रतिबंध कानून” जैसी लगती है। दोस्ती तो दिल का मामला है, इसे नंबरों में कैसे बाँध सकते हैं? मैं तो “असीमित” हूँ — नाम से भी और भावना से भी!
अब जो भी रिक्वेस्ट आती है, दिल चाहता है एक्सेप्ट कर लूँ — पर सिस्टम कहता है, “Error 5K Reached!” लगता है दिल तो अभी जवान है पर फेसबुक बूढ़ा हो गया है।
अब फेसबुक की दोस्ती को भी नजर सी लग गयी है ,सच पूछिए तो फेसबुक की दोस्ती अब वैसी पवित्र नहीं रही जैसी पहले थी। अब तो “फ्रेंड रिक्वेस्ट” का मतलब फ्रेंड विद बेनिफिट जैसा ही मामला । कोई आपकी डॉक्टरी कंसल्टेशन चाहता है, कोई डिस्काउंट में इलाज, कोई अपनी बासी पडी कविता सुनाना चाहता है, अपनी लिखी पुस्तकें आपको चिपकाना चाहता है तो कोई आपकी फ्रेंड लिस्ट में फीमेल फ्रेंड को चुन -चूं कर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजेगा ,ये फेसबुक के हंस है जो समुन्दर में मोती चुनते है l तो कोई बस इतना चाहता है कि कल समाज में कह सके — “अरे, वो डॉक्टर ,यार क्या ही उसकी औकात ,मेरे जैसे का भी फ्रेंड हैं!”
मतलब, आपकी दोस्ती अब उनकी सामाजिक पहचान बन गई है — जैसे किसी के पास गाड़ी नहीं हो पर गाड़ी वाले दोस्त का नाम ज़रूर हो।
कुछ लोग तो बस आपकी निजी ज़िंदगी में झाँकने के लिए दोस्ती करते हैं — कि देखो, डॉक्टर साहब भी इंसान हैं यार , मैं तो समझ रहा था ये कोई अलिएन् प्राणी है ,बताओ आईस्क्रीम खाते हुए फोटो में पकड़े गए। कुछ तो ऐसे भी हैं जो आपके सेल्फी सेक्शन में “रीकॉग्निशन सर्वे” करने आते हैं — कौन किसके साथ मुस्कुरा रहा है।
अब फेसबुक की नई नीति कहती है — “दोस्त नहीं, फॉलोअर बनाओ।” मतलब, अब मोहब्बत भी एकतरफ़ा हो गई। वो ज़माना गया जब दोस्ती में दोनों पक्ष बराबर थे; अब तो एक बोलता है और हज़ार सुनते हैं — और अगर आप गलती से कुछ गलत बोल गए, तो वही हज़ार आपको “अनफॉलो” भी कर देंगे ।
इसलिए मेरी नम्र गुज़ारिश है ज़ुकेनबर्ग जी से — कृपया ऐसा प्रावधान कीजिए कि जो लोग पाँच हज़ार की सीमा के कारण लिस्ट में नहीं जुड़ पाए, उनकी रिक्वेस्ट्स “आर ए सी “ में रखी जाएँ ,जैसे ही कोई सीट खाली होती है ,उन्हें स्वतः ही खाली सीट मिल जाए ।”
मैं तो चाहता हूँ इसमें एक बिज़नस की संभावना भी फेसबुक खोज सकता है ,शेयरिंग बेसिस पर जैसे प्रीमियम फ्रेंड रिक्वेस्ट, अर्जेंट फ्रेंड रिक्वेस्ट ,आपातकालीन और तत्काल जैसी सुविधा के लिए कुछ अतिरिक्त धनराशी वसूली जाए l एक रेलवे टी टी की तरह फ्रेंडशिप मेनेजर नियुक्त कर दें ,रोजगारोन्मुखी फेसबुक प्लेटफार्म l
फिर हम भारतीय है न,जुगाड़ लगा कर, कुछ ले देकर सीट ले ही लेंगे l
और हाँ, एक खुश खबरी मैं इस समय अपनी “फ्रेंड लिस्ट सफाई अभियान” में जुटा हूँ। बिलकुल वैसी ही जैसे चुनाव आयोग वोटर लिस्ट में ‘एस आई आर’ प्रक्रिया में लगा है ऐसा ही कुछ l बस ज्यादा नहीं ,कुछ अकर्मण्य, साइलेंट ऑनलुकर्स — जो सालों से बस सीन मार रहे थे — उन्हें अनफ्रेंड कर नई सीटें खाली कर रहा हूँ।
खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में
हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम
थोड़ा सब्र रखिए — जैसे ही जगह बनेगी, आपकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लूँगा। वैसे भी मेरी सभी पोस्ट्स पब्लिक हैं — इसलिए चाहें तो फॉलो करके भी झाँकने का आनंद ले सकते हैं।
बस याद रखिए — मैं फॉलोवर नहीं, दोस्त चाहता हूँ।
बाक़ी तो सब ठीक है, बस फेसबुक का सर्वर थोड़ा दिलदार हो जाए — तो ज़िंदगी में फिर से “Pending Friend Requests” नहीं, “New Friendships” दिखने लगेंगी।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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