५ दिसंबर—गर्ग हॉस्पिटल का स्थापना दिवस।
यह दिन मेरे लिए हमेशा दोहरी रोचकता लेकर आता है। वजह यह कि औपचारिक लेखन का मेरा सफ़र भी एक संस्मरण से ही शुरू हुआ था—“ख़ाँ की बारात”, जो SMS मेडिकल कॉलेज के दिनों की एक मज़ेदार याद पर आधारित था। और संयोग देखिए, उस मजेदार सांस्कृतिक कार्यक्रम की तारीख भी ५ दिसंबर ही हुआ करती थी। कितना अद्भुत है कि जीवन की दो–दो यात्राओं ने एक ही तारीख को अपना ठिकाना बनाया।
खैर—आज का दिन गर्ग हॉस्पिटल के लिए भी महत्वपूर्ण है।
आज यह अस्पताल सरकारी कागज़ों में एक ३० बेड का सिंगल स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है, हकीकत में ओक्यूपेंसी दो बेड से भी कम है—सिर्फ़ इसलिए कि सरकारी योजनाओं का लाभ ज़्यादा से ज़्यादा रोगियों तक पहुँच सके। यह इलाका सामाजिक–आर्थिक रूप से साधारण वर्ग का क्षेत्र है—जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं को सहज और किफ़ायती बनाना केवल सेवा ही नहीं, एक ज़िम्मेदारी बन जाती है।
और इसी कारण अस्पताल की झाँकी –साज, व्यवस्था, सब कुछ सरकार के तयशुदा प्रोटोकॉल के हिसाब से सजाना पड़ता है—ताकि हर गरीब–मध्यमवर्गीय परिवार बिना झिझक स्वास्थ्य–सेवा ले सके।
२५ साल पहले की बात…
PG करने के बाद जब मैं गंगापुर शहर आया था, तो शहर ने कोई गर्मजोशी भरा स्वागत तो नहीं किया था — उस समय सरकारी डॉक्टर को ही समाज में सम्मान का दर्जा मिलता था ,निजी अस्पताल वाले सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसे कमाने की मशीन समझे जाते थे ,कुछ हद तक अभी भी ।हाँ, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और जान–पहचान वालों ने अवश्य चेहरे पर सहानुभूति का भाव दिखाया। जैसे कह रहे हों—
“यार, आजकल सरकारी नौकरी कहाँ मिलती है? वो भी जनरल वालों को! अच्छा किया, तो बस जिसने भी सुना की मैंने निजी अस्पताल खोलने का मन बनाया है वो मातमपुरसी करने के बहाने हमारे पास चला आया।”
इतने बड़े अस्पताल खोलने का इरादा मेरे मन में भी कहाँ था?
लेकिन सरकार हर साल न्यूनतम आवश्यकताएँ बढ़ाती गई—और हम हर साल उन आवश्यकताओं के अनुसार सुविधाएँ जोड़ते गए।

शुरुआत?
एक ताँत –वाली कुर्सी और एक टेबल।
इतना ही।
पर किस्मत के पास अपना ही ब्लूप्रिंट होता है—जो आदमी के समझने से पहले ही तय हो चुका होता है।
यही वजह है कि जिले की पहली C–ARM मशीन यहीं लगवानी पड़ी—आज से २३ साल पहले, जब ऐसी मशीनें सिर्फ मेडिकल कॉलेजों की शोभा मानी जाती थीं।
इसके बाद जिले का पहला MRI यहीं आया।सन २०१७ में ।
फिर जिले की दूसरी CT मशीन 2018 में , और उसके बाद पूरा जिला के पहली डिजिटल एक्सरे CR मशीन को याद करता है, वह भी गर्ग हॉस्पिटल में ही लगी।
2002 से 2005 तक अस्पताल किराए के मकान में, हाइयर सेकेंडरी रोड पर चलता था।
और यादगार संयोग—मेरे हाथों पहली बड़ी सर्जरी उसी दिन हुई, जिस दिन मेरी बेटी अनुष्का का जन्म हुआ।मई २० ,२००२ को l
जीवन कभी–कभी इस तरह यादों की पोटली पकड़ा देता है कि बस चुपचाप बैठकर मुस्कुराने के अलावा कुछ नहीं रहता।
आज भी कोशिश यही है—
कि जो काम समय पर अपने सीमित संसाधनों से कर सकता हूँ, उसे ईमानदारी से करूँ।
जो नहीं कर सकता, उसके बारे में रोगी को सही सलाह दूँ—किसी और की किस्मत या स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न करुँ।
हमेशा यही चाहा कि अस्पताल का स्टाफ तथा रनिंग खर्च कम से कम रहे—ताकि किसी रोगी पर अनावश्यक आर्थिक भार न पड़े।
पर सच यह भी है—
चाहे जितनी मेहनत कर लें,
हर मरीज़ को सौ प्रतिशत संतुष्ट कर पाना असंभव है।
ऑर्थोपेडिक्स तो वैसे भी परिणाम–आधारित शाखा है—अगर रेटिंग प्रणाली लागू हो जाए, तो कई बार १० में से २ मिलने में भी देर न लगे।
फिर भी—
आज मैं गंगापुर और आसपास के सभी क्षेत्रवासियों का धन्यवाद करता हूँ
कि उन्होंने वर्षों से मुझ पर भरोसा रखा।
बिना झिझक यहाँ आते रहे, और मुझे वह करने दिया, जो मैं कर सकता हूँ—आपकी सेवा।
और सबसे बड़ा धन्यवाद—मेरे स्टाफ को।
सुख–दुख, मोटे–पतले हर दौर में मेरे साथ जुड़े रहे।
मुझे गर्व है कि मेरा कोई भी स्टाफ १० वर्ष से कम पुराना नहीं है।
और दो ऐसे स्टाफ हैं, जो अस्पताल की शुरुआत से ही—बल्कि, सच कहूँ तो—मेरे गंगापुर आने के दिन से ही मेरे साथ हैं।
जीवन के इन २५–३० वर्षों में बीता हर दिन एक नई सीख देकर गया है।
और आज, स्थापना दिवस पर, पीछे मुड़कर देखने का मन हुआ—तो पाया कि यह यात्रा मेरी अकेली कभी रही ही नहीं।
आप सबने—स्टाफ, परिजन, रोगी, और इस शहर ने—मिलकर इसे ‘गर्ग हॉस्पिटल’ बनाया है।
सभी स्वस्थ रहें ख़ुश रहें ![]()
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