**जा तू धन को तरसे…**
धनतेरस का त्योहार है। मैं अपने वॉलेट को देख रहा हूँ… खाली है। उसका पेट भी खाली है, फिर भी आज कुछ ज्यादा हंसी आ रही है उसे देखकर। कह रहा है जैसे… “मुझे साल भर तो भूखा-प्यासा रखा और आज एक दिन के लिए खिलाएगा!” ऐसा लग रहा है जैसे वह बददुआएँ दे रहा हो। ‘इस धनतेरस पर भी मेरे मालिक… “जा तू धन को तरसे।” श्रीमती जी की हिदायत है कि धनतेरस पर कुछ न कुछ खरीदना शुभ माना जाता है। हमें भी बहाना आता है… “भाग्यवान, दिवाली पर जेब से धन जाने नहीं देना चाहिए।” अगर हम धनतेरस के नाम पर बाजार में खरीदारी करने जाएंगे, तो यह त्योहार बाजार के लिए ही शुभ हो जाएगा ना! मुझे नहीं पता कि श्रीमती जी को मैं कन्विंस कर पाया या नहीं, लेकिन इस बार अगर बाजार जाना ही पड़ा, तो हमारी लिस्ट तैयार है, कसम से! लोग सोने के पीछे भाग रहे हैं… सोना तो पहले ही इतना महंगा हो चुका है कि ‘सोना हराम’ कर रखा है। हमारी लिस्ट में इस बार है आधा किलो टमाटर, चार प्याज, दो चम्मच स्टील के, और वो भी छोटे साइज के।
माया चंचल स्वरूपा है, छल-छद्म भेषी है। इस विमुद्रीकरण के दौर में, माया अब नोटों में नहीं, बल्कि टमाटर और प्याज में बसी है। जिसकी रसोई में टमाटर और प्याज मिल जाए, समझो वह गरीब रेखा से ऊपर है। सरकार भी शायद बीपीएल की नई गाइडलाइन्स में यही क्लॉज डाल दे!
किसी और दिन नहीं, लेकिन धनतेरस पर हम धन के लिए तरसते हैं। मरीज़ भी धनतेरस मनाते हैं और इस बात का ख्याल रखते हैं कि परामर्श या तो बिना धन के ले जाएं या फिर दिवाली के बाद चुकाएं। अब डॉक्टर लोगों का धन से क्या वास्ता…
धन का असमान वितरण हुआ है, और इसमें भी उल्लू की चाल है। उल्लू ने लक्ष्मी जी को भी उल्लू बनाया है। लक्ष्मी जी तो बस अपने वाहन पर सवार हो जाती हैं, बिना कोई सवाल-जवाब, तहकीकात किए…निर्लिप्त भाव से, अपने धन की परात हाथ में लिए। लाभार्थियों की लिस्ट उल्लू ने ही बनाई है। जैसे ‘अंधा बाँटे रेवड़ी और फिर-फिर कर अपने लोगों को ही देता है, उसी प्रकार उल्लू भी इस प्रथा का निर्वहन कर रहा है… अपने जाति भाइयों के यहाँ ही रुकता है। लक्ष्मी जी को कहता है, “मैं यही पार्किंग में खड़ा हूँ… आप बाँट आइए।” जैसे बड़े-बड़े होटल भी ड्राइवर का पूरा ख्याल रखते हैं, क्योंकि वही उन्हें ग्राहक लाता है, इसीलिए ड्राइवर के खाने-पीने, ठहरने का पूरा इंतजाम रखा जाता है। यहाँ बड़े लोगों के आलिशान महलों में भी उल्लू के लिए पार्किंग में विशेष डालियों का प्रबंध है। बस, उल्लू लटके रहते हैं मस्त डालियों पर, आँखें बंद किए… लक्ष्मी जी लगी रहती हैं धन बरसाने में।
जैसे न्याय की देवी को आँखों पर पट्टी बाँध कर हम आश्वस्त हो जाते हैं कि वह अमीर-गरीब, राजा-रंक में भेदभाव नहीं करेंगी, उसी तरह लक्ष्मी जी ने उल्लू को अपना वाहन बनाया कि वह उल्लू है… बिना दिमाग का। दिन में वैसे भी उल्लू को दिखता नहीं है, तो वह वहीं बैठता है जहाँ उजड़ा चमन हो। लक्ष्मी जी यही तो चाहती थीं कि धन का वितरण वहीं हो जहाँ उसकी जरूरत हो…
लेकिन उल्लू राजा चालाक निकले। उल्लू ने रात का समय चुना और लक्ष्मी जी से कहा कि “दिन में तुम आराम करो।” दिन में पिद्दी से दिहाड़ी मजदूर हैं, मेहनती गरीब लोग हैं, जो दिन भर मेहनत करते हैं। दिन में अगर उल्लू जी ले जाएँगे तो लक्ष्मी जी शायद उन्हें देख लें और उनके घर आ जाएँ। उल्लू जी को अंधेरे से प्यार है। अंधेरे में रहकर या लोगों को अंधेरे में रखकर जो धन कमाते हैं, उनके यहाँ धन की बरसात होनी है। उल्लू को रात में सब साफ दिखता है, वे सभी रईस, भ्रष्टाचारी, अनाचारी जिनका धंधा ही अंधेरे की बदौलत है साफ़ नजर आते हैं…कमसिन इशारों से बुलाते हैं उल्लू जी को । बस वही पार्क होता है लक्ष्मी जी का वाहन।
दीए की टिमटिमाती रोशनी में उल्लू को उतना साफ नहीं दिखता जितना ऊंचे कंगूरों पर चमकती LED बल्बों की रोशनी में। क्या करें उल्लू बेचारा… उसकी मजबूरी है। कहीं अंधेरे में टकरा न जाए, वरना लक्ष्मी जी की धन की परात छलक जायेगी । ख्वामखाह धन की बंदरबांट की ऑडिट हो जायेगी..अब गरीबों को कहाँ आता है आंकड़ों में हेरा फेरी करना..बांटे १०० रु और दस्तखत करवाए १००० पर… । बड़े रईस लोगों को आता है हिसाब-किताब संभालना… गरीब को तो गिनती भी नहीं आती। अगर 99 दे भी दिए तो वह 99 के फेर में ही उलझा रहेगा, सब कुछ भूल जाएगा।
बड़ा मिलियन डॉलर का सवाल है जो आजकल हर कोई पूछ रहा है… “क्या कारण है कि अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब?” वो कहते हैं ना, “लक्ष्मी देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है।” लक्ष्मी जी ने उल्लू जी को समझाया कि, “देना तो उन्हें है जिनके छप्पर तने हों।” लेकिन उल्लू जी को आरसीसी छतें ज्यादा पसंद हैं। उन्हें छप्पर फाड़ने में मजा नहीं आता। धमाकेदार आवाज में फटती पक्की छतें, अमीरों के घरों में धन बरसता है, फुलझड़ियों से स्वागत होता है। गरीब के यहाँ धन बरसाने पर स्वागत तो दूर, बेचारा गरीब तो सहम जाएगा… पसीने-पसीने हो जाएगा, रिश्तेदार पीछे पड़ जाएँगे, इनकम टैक्स वाले, डोनेशन वाले, चैरिटी वाले सब। बेचारा जीना भूल जाएगा, चोरों से हिफाजत भी नहीं कर पाएगा। नींद उड़ जाएगी रात की… ऐसी तिजोरियाँ गरीबों के घर में हैं ही नहीं जो उसके माल की सुरक्षा कर सकें। तिजोरी की चिंता में गरीब की जान पर और आँच आ जाएगी।
कुल मिलाकर धनतेरस, धनवानों को ही मुबारक!

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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