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खुदा ही खुदा है-हास्य व्यंग्य रचना

बारिश से लबालब भरे एक गड्ढे में पसरे कुत्ते और पीछे खुदाई में जुटी JCB मशीन, चारों ओर कीचड़ और टूटी सड़कें।

**खुदा ही खुदा है **

खुदा की तलाश किसे नहीं है? सबको है। लेकिन जिसे है, वह इस शहर में आए—गड्डापुर। यहाँ आपकी तलाश पूरी होगी, शर्तिया गारंटी है, वैसी ही गारंटी जैसे दाद, खाज, खुजली, भगंदर, नासूर, नपुंसकता का इलाज और खोए हुए प्यार दिलाने वाले विज्ञापन देते हैं। 

यूँ तो विकास और खुदाई का चोली-दामन का साथ है। विकास होगा तो खुदाई भी होगी। पुल बनेंगे, सड़कें बनेंगी, इमारतें बनेंगी, बड़े-बड़े टावर लगेंगे। इन सबके लिए खुदाई सबसे पहली ज़रूरत है। रेलवे का ‘अमृत स्टेशन’ प्रोजेक्ट आया, मेरे शहर का रेलवे स्टेशन सब जगह अमृत रूपी मलबे के ढेर और भीमकाय गड्ढों के साथ अपनी अमृतकाल की कहानी कहता नजर आ रहा है। विकास के ये गड्ढे कभी कम न हों, इसलिए एक गड्ढा पाटते ही दूसरा खोद कर तैयार हो जाता है! 

विकास के ये गड्ढे जितने गहरे होंगे, उतना ही विकास गहराई से हमारे जीवन में पैठ करेगा। 

विकास के इन गड्ढों में क्या आदमी, क्या जानवर, सब गोते लगाते हैं। खासकर बारिशों में तो विकास की नदियाँ गड्ढों में भी नहीं समातीं, सड़क पर बहने लगती हैं। लोग विकास गंगा में ऐसे डूबते हैं कि कई तो इस पवित्र डुबकी में भवसागर से ही पार हो लेते हैं। शायद पुराणों में इसे ही भवसागर नाम दिया गया होगा। 

विकास के गड्ढों में राजनीति की मजबूत नींव भरी जाती है। मेरे शहर में देखो, हर जगह खुदाई है। पूरा शहर खुदामय हो रहा है। खुदाई यहाँ का ट्रेडमार्क बन चुका है। नगर निकाय, बिजली विभाग, नल विभाग, आम जनता सब इस ट्रेडमार्क को निखारने में लगे हुए हैं। जहाँ खुदाई नहीं मिलती, वहाँ खोदने की लालसा सवार हो जाती है। 

विकास असल में हमारे शहर में ही बह रहा है, बिल्कुल पानी की तरह! लोगों के सर के ऊपर से गुजर रहा है, बिल्कुल पानी की तरह। विकास लाने वालों का कहना है, विकास कहीं बहकर निकल न जाए, इसलिए खोदना पड़ता है। कहीं दूसरे क्षेत्र वाले इस विकास के पानी को जमा न कर लें, इसलिए इसे गड्ढों में भरा जाता है। बरसात में तो शहर की नालियाँ भी इस विकास के पानी से लबालब भरी रहती हैं। चारों ओर विकास की सड़ांध और बदबू फैली हुई है। क्या कुत्ते, क्या सूअर, आदमी भी इस का मजा ले रहे हैं! 

सीवर लाइन हो या अमृत जलधारा की लाइन, गली-गली और मोहल्ले में अपने खुले सीने के साथ शहरवासियों का स्वागत करती नजर आती हैं! वैसे इन्हें शहर की जीवन रेखा बताया जा रहा है। सांसदों और विधायकों की कुर्सी भी इन जीवन रेखाओं के सहारे ही हथियाई गई है। इस विकास के गड्ढों से शहर अटा पड़ा है। अब तो जब भी ये गड्ढे भर जाते हैं, शहरवासी चिंतित हो जाते हैं। उन्हें विकास की शक्ल नहीं दिखती, तो खाना हजम नहीं होता। शहरवासी भी अपना पूरा योगदान देते हैं। कभी टेंट, शमियाना गाड़ने के बहाने, कभी सबमर्सिबल के बहाने गड्ढे खोद दिए जाते हैं। विकास का ढेर सड़क पर हर जगह नजर आता है। गड्ढे से निकालकर विकास को सड़क पर फेंका जाता है। इस महान कार्य में शहर के अवैतनिक सफाई कर्मचारी दिन रात कार्य कर रहे हैं lइन्हें  आप शूकर ,सांड,कुत्ते आदि जाती सूचक नाम से पुकार सकते हैं l नगर परिषद ने इन्हें बिना टेंडर निकाले रखा हुआ है, अपना पूरा योगदान देते हैं। चूँकि सवैतनिक दोपाए कर्मचारी तो आए दिन हड़ताल पर रहते हैं, इसलिए ये इस विकास को चारों तरफ फैलाने में अपना पूरा योगदान दे रहे हैं। विकास को सड़क से घर तक ले आते हैं—विकास आपके दरवाजे तक। 

लोगों को साफ चमचमाती सड़कें आँखों में चुभने लगती हैं। लोगों को रतौंधी हो जाती है। उन्हें विकास नजर नहीं आता तो पुत्र वियोग जैसा विलाप करने लगते हैं। जब दूसरे विधायक आए, तो उन्हें पहले विधायक के विकास का काम फूटी कौड़ी नहीं सुहाता। उन्होंने अपने अपने क्षेत्र में (यूँ तो पूरा विधायक क्षेत्र उनका अपना है, लेकिन वह अपना क्षेत्र उसे ही कहते हैं जिसने उन्हें वोट दिया) भूतपूर्व विधायक के विकास की निशानी इन गड्ढों को भरवा दिया। लोगों को विकास नजर नहीं आने लगा। जो क्षेत्र इनका अपना नहीं था, वहाँ विकास जमकर फल-फूल रहा था। हारे हुए विधायक से अपने विकास की ये दुर्दशा देखी नहीं गई, वह पूरे क्षेत्र को ही अपना मानते थे और विकास के गड्ढे बिना किसी भेदभाव के सब जगह बराबर खोदे थे। क्षेत्र के मतदाताओं के साथ मिलकर एक ही बात कहने लगे, “देखो भाइयों और बहनों, ये विधायक अपनी मनमानी चला रहा है। इसे विकास पसंद नहीं है। विकास के गड्ढों को पटवा रहा है। हिम्मत है तो मेरे क्षेत्र में आकर पटवाओ। ये अन्याय है। शहर के लोगों के साथ धोखा है। मेरे विकास पर लांछन लगाकर धोखे से जीत हासिल की है। हम हरगिज़ ऐसा नहीं होने देंगे। इस बार अगर हम जीते, तो हम और विकास लेकर आएंगे।” 

गड्ढों के आसपास थोड़ी सड़कें दिखाई दे रही हैं, उन्हें भी विकास के गड्ढों से जीवंत करूंगा। कुछ योजनाएँ लेकर आऊंगा। बिजली के खंभों पर नंगे तारों की जगह अंडरग्राउंड बिजली के तार बिछाएंगे। टेलीफोन विभाग की केबल अंडरग्राउंड डलवाएंगे। गैस पाइपलाइन अंडरग्राउंड। आप देखना, सड़क  का बचा हुआ हर एक कतरा खुदामय हो जाएगा। 

तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गुंजायमान हो गया। “शहर का नेता कैसा हो, खुदी राम जी जैसा हो।”

रचनाकार –डॉ मुकेश असीमित
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