**कुट्टू पार्टी**
कुट्टू पार्टी… जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा। नहीं, नहीं, ये कोई ‘किटी पार्टी’ नहीं है। ये तो एक शुद्ध सात्विक धार्मिक आयोजन है। किटी पार्टी तो पश्चिमी संस्कृति की देन है, लेकिन कुट्टू पार्टी पूरी तरह से हमारी परंपरा और श्रद्धा से जुड़ी हुई है। यूं देखा जाए तो दोनों ही पार्टियाँ महिलाओं के जीवन में अहम हिस्सा हैं, लेकिन कुट्टू पार्टी खास उन महिलाओं के लिए है जो महीने में आठ-दस बार व्रत करती हैं। अपने बच्चों, परिवार और पति की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। हर मनोकामना के लिए एक खास व्रत निर्धारित है – अच्छे वर के लिए, नौकरी के लिए, बेटे के विवाह के लिए, फिर बेटे के बेटा होने की मनोकामना… और इसी तरह। मनोकामनाओं की ये लड़ी कभी टूट न पाए; ईश्वर को 24×7 व्यस्त रखने के लिए, अपनी सिफारिशों की फाइलें व्रत के माध्यम से ऊपर तक पहुँचाई जाती हैं। सभी के लिए व्रत रखा जाता है। यूं तो कई प्रकार के व्रत बताए गए हैं… नित्य व्रत, निराहार, निर्जला, फलाहार, सागर व्रत, सात्विक व्रत, पक्ष व्रत, साप्ताहिक व्रत, नैमित्तिक, कामी व्रत, त्योहार व्रत, एकादशी, चंद्रायण, चौथ, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, सप्तमी आदि… मन, वचन, कर्म की शुद्धि के लिए व्रतों का प्रावधान है। इंद्रियों को आराम देने के लिए व्रत हैं, तभी मौन व्रत भी प्रचलित है। लेकिन पुरुषों द्वारा इस व्रत पर अत्यधिक जोर दिए जाने से महिला शक्ति को इसमें पुरुषों की बोलने के अधिकार को छीनने की साजिश नजर आने लगी और इसका विरोध किया। अब यह व्रत पुरुष ही यदा-कदा धारण करते हैं।
व्रत में सबसे बड़ी समस्या आती है कि व्रत खोला कैसे जाए? अन्न और नमक का सेवन वर्जित है, ऐसे में कुट्टू का आटा एक आदर्श समाधान बनकर आता है। इस कुट्टू के आटे की भी एक पौराणिक दास्तान है जो पुराणों में वर्णित नहीं है, पर आज हम उसे सुनाते हैं।
एक बार मृत्यु लोक में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। ब्रह्मा जी ने पुरुषों को शारीरिक रूप से महिलाओं से ज्यादा ताकतवर बनाया, लेकिन स्त्रियों को सहनशीलता, कोमलता और सुंदरता का अद्वितीय वरदान दिया।
महिलाओं ने कहा, “ब्रह्मदेव, आपने हमें इतने सर्वगुण संपन्न बनाया है… कि हम एक ऐसी साधना चाहते हैं जो हमें पूजा-पाठ के बराबर फल दे।” तब ब्रह्मा जी ने कहा, “तुम व्रत रख सकती हो, जिस दिन चाहो उस दिन उपवास कर सकती हो।”
कालांतर में महिलाओं में व्रत करने की होड़ सी लग गई। व्रत के लिए नियम बनाए गए… व्रत का मतलब निराहार रहना ही है। क्या खा सकते हैं, क्या नहीं खा सकते, ये अनुच्छेद बाद में संशोधन द्वारा जोड़े गए, जब महिलाओं ने महिला उत्पीड़न का आरोप लगाया। धर्म संसद में महिलाओं की मांग पूरी की गई और नमक तथा अन्न का सेवन वर्जित किया गया। बस फिर क्या था, जितनी चीजें व्रत में नहीं खाने वाली थीं, उससे ज्यादा खाने वाली चीजों की सूची बन गई। फल, फ्रूट्स, मिठाई, हलवा, शरबत – सब आ गया। नमक बिना सब्जियाँ बेस्वाद लगने लगीं तो सेंधा नमक डाला जाने लगा। लेकिन अन्न का कोई विकल्प नहीं मिल रहा था। अब अन्न के विकल्प की खोज तेज हो गई।
महिलाओं ने पुनः याचिका दायर कर दी और प्रार्थना की, “प्रभु, आपने हमें व्रत जैसा कठोर उपासना का उपक्रम दिया है, लेकिन हम अन्न से वंचित हैं। ऐसा उपाय बताइए जिससे हम व्रत भी रख सकें और भूख भी शांत कर सकें।” तब ब्रह्मा जी ने ‘कुट्टू के आटे’ का महत्व बताया और कहा, “हे देवी, यह आटा तुम्हें उपवास के दौरान सहारा देगा और तुम्हारी भूख को भी शांत रखेगा।” बस, इसके बाद से कुट्टू का आटा व्रतधारी महिलाओं का प्रिय साथी बन गया। रसोई में कुट्टू के आटे से पूरी, पकौड़े, चटनी, हलवा, खीर – सब कुछ बनने लगा और कुट्टू पार्टी का चलन आरंभ हो गया।
सभी प्रेम से बोलो, “कुट्टू महारानी की जय!”

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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