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लॉक डाउन का एक दिन-लेख हनुमान “मुक्त “

लॉक डाउन का एक दिन-लेख हनुमान "मुक्त "

लॉक डाउन का एक दिन

सुबह हो गयी है

पत्नी उठ गई है अपने रोज के कामों में लग गई है।
मैं बिस्तर पर लेटा हुआ हूं सोच रहा हूं। उठूं या नहीं उठूं।
मन कहता है पड़ा रह ।उठ करके भी कौनसी बहादुरी करनी है।
ऑफिस जाना नहीं है।
फिर मन करता है उठ ही जाओ। कोई एक दिन की बात तो है नहीं कब तक पड़ा रहेगा ।
इस लॉक डाउन का कोई भरोसा भी नहीं है यह कब तक चले ।उठने में ही भलाई है ।
लेकिन फिर दूसरे ही पल मन कहता है पडा रह। ऐसे दिन कोई रोज-रोज तो आने वाले हैं नहीं। जाने कैसे ये दिन आए हैं।इन दिनों का मजा ले।
खूब आराम से तान खूंटी सो ।
बड़ी अनिश्चय की स्थिति है।
न सोया जा रहा न उठा जा रहा।
ऐसी छुट्टी रोज रोज थोड़ी आती है ।पहले छुट्टियों में मित्र आ जाते थे या कोई काम लग जाता था। बाहर घूमने और बाजार का सामान लाने से ही फुर्सत नहीं मिलती थी। अब बड़ी मुश्किल से ऐसी फुर्सत मिली है।
जी भर के इस का आनंद ले। पहले मैं कहीं बाहर निकल जाता था ।मैं नहीं जाता तो कोई न कोई आ धमकता था फिर वही सारा दिन बेकार चला जाता था।
चलोअच्छा है अब किसी के आने जाने की कोई किट किट पें पें नहीं है ।सब और शांति है।
बाहर से भी कोई आवाज नहीं आ रही है । सब लोग अपने दड़बों में दुबके पड़े हैं ।
पड़ा रह।
रसोई से पत्नी की आवाज आई।
“उठ रहे हो तो चाय बनाऊं।”
सोच रहा हूं। चाय तो पी ही लेता हूं फिर चाय पी कर सो जाऊंगा। मैंने कहा,” बना दो।”
पत्नी ने चाय बना दी। वह चाय बेडरूम में ले आई। बोली ,
“लो उठ जाओ ।चाय ठंडी हो रही है। पी लो।”
मैंने कहा,” रख दो।पी लूंगा ।”
पत्नी चाय का कप रखकर चली गई और अपने रोज के कामों में लग गई।
मैं अभी तक लेटा हुआ हूं। सोच रहा हूं। चाय पिऊं या नहीं पिऊं। चाय पी लूंगा तो फिर नींद नहीं आएगी ।उठना पड़ेगा इसलिए चाय पीना मुल्तवी करता हूं।
लेकिन तभी मन ने कहा । अरे, उठ जाओ चाय पी लो। मन करें तो फिर उठ जाना ।नहीं तो फिर सो जाना ।
मैं उठ गया। चाय का प्याला उठा लिया और धीरे-धीरे चाय पीने लगा।
मैंने चाय पूरी पी ली ।अब फिर बिस्तर पर लेट गया ।तभी दोबारा रसोई से पत्नी की आवाज आई,” क्या विचार है पड़े ही रहोगे या उठागे भी।”
मैंने कहा ,”तुम्हें इससे क्या?
मैं पड़ा रहा या उठूं।मुझे कुछ करना धरना तो है नहीं। ऑफिस जाना है नहीं।फिर उठ करके भी क्या करूंगा।”
“तो क्या सारा दिन ऐसे ही पड़े रहोगे। फ्रेश हो लो। मैं नाश्ता बनाती हूं ।”वे बोली।
फिर मन ने कहा, चलो उठ ही जाओ ।फ्रेश हो लो ।फिर नाश्ता करके सो लेंगे ।
कौन सा कोई काम करना है। कौन कहने वाला है।
मैं उठ जाता हूं। फ्रेश होने के लिए टोयलेट में घुस गया। वहां भी ऐसे ही प्रश्न आ रहे थे फिर भी फ्रेश होकर बाहर आ गया।
पेस्ट कर लिया। पत्नी ने नाश्ता तैयार कर दिया। नाश्ता टेबल पर लगा दिया।
मैं टेबल पर बैठ गया।नाश्ता सामने है ।एक हाथ से नाश्ता कर रहा हूं। फिर वही प्रश्न मन में गूंज रहा है ।अब नाश्ता करने के बाद क्या करना है ।
बिस्तर पर जाकर सोएं या टीवी देखें। मैं बिस्तर पर जाकर लेट जाता हूं।
टीवी ऑन कर लिया है। टीवी भी देख रहा हूं।
टीवी पर समाचार देख रहा हूं। कहां-कहां लोकडाउन है। सुन रहा हूं। कितने मरीज संक्रमित हैं आज कितने पोजिटिव आए। कितने मर गए ।
कितने मजदूर कहां पड़े हुए हैं। कौन उन्हें खाना खिला रहा है कौन राशन दे रहा है। देख रहा हूं सुन रहा हूं।
लोग पैदल चल रहे हैं। साइकिल पर भी।
पत्रकार इंटरव्यू ले रहे हैं ।घर कितनी दूर है ?कब तक पहुंचोगे? वे सहमी सी नजरों से पत्रकार की ओर देखते हैं।
“पहुंच जाएंगे ।पन्द्रह बीस दिनों में।”
“रास्ते में खाओगे क्या?”
“जो मिल जाएगा।”
“कोरोना संक्रमित हो गए तो?”
” क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा मर जाएंगे।वैसे भी नहीं जाएंगे तो भूख से मर जाएंगे।”
और वे आगे चल देते हैं।
मैं यह सुनकर ,देख कर बोर हो जाता हूं।
चैनल बदलता हूं। एक चैनल पर अच्छे धूम-धड़ाके वाले गाने आ जाएं। उसे देखता हूं।
फिर बोर हो जाता हूं । चैनल बदलता हूं ।कब दो घंटे गुजर गए। पता नहीं चला।
रसोई से पत्नी की आवाज आती है ।
“नहा लो ।खाना तैयार है।”
मैं सोचता हूं ।नहाए या बिना नहाए ही खाना खा लें।
रिमोट से टीवी के चैनल बदल रहा हूं ।साथ ही सोच भी रहा हूं ।
फिर रसोई सेआवाज आती है।” नहा लो।मैंने टॉवल बाथरूम में रख दिया है।”
मैं टीवी बंद करता हूं।
बाथरूम में घुस गया।चलो नहा ही लेता हूं ।लो मैं नहा लिया।
मैंने अपने कपड़े भी बदल लिए। तैयार हो गया।
पत्नी ने खाना लगा दिया। मैं टेबल पर पहुंच गया। खाना सामने है। सोच रहा हूं। अभी खाऊं या बाद में खाएं।
पत्नी बोली ,”खाना खा लो।”
मैंने खाना शुरु कर दिया ।लो मैंने खाना खा भी लिया। अब मैं दोबारा जाकर बिस्तर पर लेट जाता हूं। फिर टीवी ऑन करता हूं । कुछ देर देखता हूं फिर बंद कर देता हूं और सो जाता हूं ।
शाम के पांच बज गए हैं ।पत्नी ने चाय बना दी। चाय बिस्तर पर ही आ गई। मैंने चाय पी ली।
फिर लेट गया ।टीवी चलाया। फिर समाचार वाला चैनल देखा। उसे बदला ।दूसरे चैनल पर कॉमेडी सीरियल देखा फिर बदला।
जाने कैसे कैसे ऊंट पटांग सीरियल आते रहते हैं।
सीरियल देखते हुए फिर मन में विचार आता है।
यह क्या हो रहा है ?
मैं क्या कर रहा हूं ?
ये टीवी पर क्या आ रहा है?
कब तक चलेगा ऐसा?
यह सोचते हुए मैं फिर टीवी बंद कर देता हूं। अपने बिस्तर से उठ जाता हूं और टहलने के लिए छत पर चला जाता हूं ।
रात्रि हो गई है। आठ बज गए हैं। पत्नी ने खाना बना दिया है। मैं खाने की टेबल पर आ गया हूं फिर खाना खा लिया ।
बिस्तर पर जाकर लेट गया। टीवी ऑन कर दिया है। चैनल बदल रहा हूं। घंटों तक यही काम करता रहा। चैनल वालों को मन ही मन कोसता रहा ।टीवी बंद किया । लो मैंने सोने के लिए आंखें बंद कर ली है ।
अब लेटे लेटे सोच रहा हूं।
चलो आज का दिन तो निकल गया। कल देखते हैं।

हनुमान मुक्त

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