मैं और मेरी हिंदी

मैं और मेरी हिंदी

मैं और मेरी हिंदी
अक्सर ये बातें करते हैं—
अगर तुम सच में
मेरी ज़िंदगी में होतीं,
तो क्या होता?

तुम कहतीं—
मुझे  सिर्फ़ फाइलों की जिल्द ढांपती क्यों हूँ?
तुम पूछतीं—
मीटिंग के बाहर मेरी आवाज़ काँपती क्यों है?
तुम इस बात पर हैरान होतीं
कि मंच पर मैं फूलों में लिपटी हूँ
और व्यवहार में हाशिए पर सिमटी  हूँ।
तुम उस बात पर हँसतीं—
कि “राजभाषा” कहलाती मैं ,
फिर क्यूँ  हर वाक्य के बाद
खिचडी सी हो जाती मैं

मैं और मेरी हिंदी
अक्सर ये बातें करते हैं।

ये दफ़्तर है
या अंग्रेज़ी का खुला हुआ दालान ?
ये आदेश है
या किसी और भाषा में दिया गया चालान ?
ये फ़ाइल है
या तुम्हारा वो हसीं चेहरा 
जिसने  दस्तख़त से पहले
अंग्रेज़ी का बाँध लिया सेहरा  ?

ये शब्द हैं
या मेरी पहचान के टुकड़े—
जो नोटशीट के नीचे
फुटनोट बनकर गिरे पड़े ?
ये तालियाँ हैं
या सिर्फ़ एक दिन का उत्सव—
हिंदी दिवस,
जिसके बाद फिर ख़ामोश कलरव ?

मैं सोचता हूँ कब से गुमसुम,
जबकि मुझे भी ये ख़बर है
कि तुम पूरी तरह ग़ायब नहीं हो—
पर मौजूद भी कहीं कहीं  होl
कभी बोर्ड पर,
कभी पोस्टर पर,
कभी भाषण की शुरुआत में—
और फिर कहीं सरकारी
फाइलों के रोस्टर पर ।

मगर ये दिल है
जो कहता है—
तुम अभी भी यहीं हो,
कहीं न कहीं
गली की बातचीत में,
माँ की लोरी, बहिन की प्रीत में ,
चाय की दुकान की बातों की जुगाली  में,
और उस किसान की गाली में ,
जो सिस्टम से हार चुका है।

मजबूर ये हालत
इधर भी है, उधर भी—
हिंदी की पुकार   ,
घर  में और दफ्तर भी ।
कहने को बहुत कुछ है
पर किससे कहें हम?
जब खुद अपनी भाषा में
बात रखने पर
जाहिल कहलायें हम

दिल कहता है
दुनिया की ये नक़ली रस्में हटा दें—
वो दीवार
जो भाषा और इंसान के बीच है
आज गिरा दें।
क्यों दिल में सुलगते रहें,
लोगों को बता दें—
हाँ, हमें हिंदी से मोहब्बत है,
औपचारिक और जाली नहीं,
पोस्टर वाली नहीं,
जीती-जागती सुलगती ,
बोलती-लड़ती मोहब्बत!

अब दिल में यही बात
इधर भी है, उधर भी है lमैं और मेरी हिंदी l

डॉ मुकेश 'असीमित'

डॉ मुकेश 'असीमित'

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी,…

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान पिन कोड -३२२२०१ मेल आई डी -thefocusunlimited€@gmail.com पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से ) काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से  काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से  अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से  –गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से  प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से  देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित  सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ”

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