मस्तिष्क का चित्रगुप्त हिप्पोकेम्पस-

कृतिस्मृति विषेष
मस्तिष्क का चित्रगुप्त हिप्पोकेम्पस
डाॅ.श्रीगोपाल काबरा

धार्मिक मान्यता के अनुसार धर्मराज के दरबार में चित्रगुप्त हर मनुष्य के जीवन काल के पाप पुण्यों का लेखा-जोखा रखते हैं। उनकी बही में सब दर्ज होता है। परलोकगामी होने पर जब यमदूत उसे धर्मराज के समक्ष पेष करते हैं, तो चित्रगुप्त बही में बांच कर उसके पाप पुण्य का लेखा बताते हैं। उसीसे निष्चित होता है कि उसे स्वर्ग या नर्क में क्या मिलेगा। मस्तिष्क के टेम्पारल लोब में स्थित हिप्पोकेम्पस तो सतत यही काम करता है, पाप-पुण्य ही नहीं, हर कार्य का आंकलन करता है, और उसे मस्तिष्क के मेमोरी सेन्टर्स में दर्ज करता है। यह चित्रगुप्त मनुष्य के क्षण-क्षण के कर्मो का लेखा-जोखा रखता है। हर घटना, घटना में निहित हर तथ्य को अंकित करता है।

हिप्पोकैम्पस -दरियाई घोडा

टेम्पोरल लोब अंदर से खोखला और सी एस एफ दृव्य से भरा होता है। उसके तल में स्थित होता है लोब का भाग हिप्पोकेम्पस। इसका आकार दरियायी घोड़े का होने के कारण इसे हिप्पोकेम्पस का नाम और पहचान दी गई है। टेम्पोरल लोब में सामने घ्राण केन्द्र, पीछे दृष्टि केन्द्र, बाहर की और श्रवण केन्द्र और ऊपर त्वचा व मांसपेषियों से आये संवेदों का केन्द्र। बाहरी जगत के सभी संवेद हिप्पोकेम्पस में आकर घनीभूत होते हैं। हिप्पोकेम्पस अपने सहयोगी डेन्टल जाइरस, पेरा हिप्पोकेम्पल जाइरस और एमेग्डेलोइड की सहायता से उनका सामुहिक विष्लेषण करता है। अक्षरों को देखने, सुनने, लिखने, समझने से भाषा का जन्म होता है, षब्दो को अर्थ मिलता है, भाव उत्पन्न होते हैं। उनकी अनुभूति होती है, अभिव्यक्ति के लिए प्रारूप दिया जाता है, और उनकोे, जब जरूरत हो, पुनःस्मरण के लिए, संकलित व अंकित होने को भेज दिया जाता है। इसे ही मेमोरी या स्मृति कहते हैं। चित्रगुप्त का लेखा ही स्मृति है। वह तत्कालिक स्मृति को दीर्घकालिक स्मृति में परिवर्तित करता है।
मेमोरी के दो प्रकार – व्यक्त और अव्यक्त; और दो स्तर – अल्पकालिक और दीर्घकालिक – की होती हैं।

डिक्लेरेटरी या एक्सप्लीसिट मेमोरी (व्यक्त चैतन स्मृति)। षरीर के बाहर परिवेष में जो घट रहा है उनसे आये संवेदों का विष्लेषण कर उन्हें हिप्पोकेम्पस समझ देता है, व्यक्त रूप देता है और समृति के लिए प्रेषित करता है। हर घटना की नई सामयिक स्मृति। यह मेमोरी समसामियिक अल्पकालिक स्तर की होती है। यह परिवेषीय स्मृति होती है। परिवेष से संपर्क, परिवेष में विचरण का यही आधार है। हिप्पोकेम्पस इस स्मृति को दीर्धकालिक संकलन के लिए मस्तिष्क के अन्य भागों को प्रेषित कर देता है। यही है बृह्माण्ड षरीर के अंदर। अगर हिप्पोकेम्पस जनित स्मृति का दीर्घकालिक संकलन नहीं होता है तो वह कुछ समय बाद लुप्त हो जाती है। धर्मराज के चित्रगुप्त के साथ भी क्या ऐसा ही होता है?

प्रोसीजरल और इम्पलीसिट मेमोरी (अव्यक्त अवचैतन स्मृति) । किसी क्रिया को करने के लिए मांसल दक्षता या कुषलता (जैसे साईकिल चलाना) के लिए संकलित अव्यक्त दीर्घकालिक स्मृति हिप्पोकेम्पस का कार्य नहीं होता। सभी षारीरिक के लिए यही मुख्य स्मृति होती है। चेतन से अधिक अवचेतन।

यह भी पढ़े


हिप्पाकेम्पस के तीन प्रमुख कार्य होते है – संयम, स्मृति और परिवेष संपर्क।
संयमः मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अनुभव से वह सीखता है कि कौनसा व्यवहार या आचरण सभ्य नहीं है और उसे नही करना है। असभ्य आचरण नहीं करने की वर्जना हिप्पोकेम्पस से ही विकसित होती है। संयमित आचरण, संयमित यौन आचरण का नियोता हिप्पोकेम्पस ही है। टेम्पोरल लोब के अग्रभाग जहां एमेग्डलोइड व हिप्पोकेम्पस स्थित है, चैट, षैल्य क्रिया या संक्रमण से नष्ट होने पर, व्यक्ति असभ्य आचरण करने से नहीं झिझकता, असंयमित यौन प्रदर्षन करता है। साथ ही उसे क्रोध नहीं आता, जिसे देख कर उत्तेजित होना चाहिए था, नहीं होता, आक्रमक नहीं होता। क्रोध, उत्तेजना, आक्रमकता, उचित परिस्थिति में अनुभव आधारित प्रतिक्रिया होती है, जो हिप्पोकेम्पस के नष्ट होने पर खत्म हो जाती है। क्लूवर बूसी सिन्ड्रोम नामक रोग मंे यही होता है।
स्मृतिः स्मृति संकलन में हिप्पोकेम्पस के योगदान और अहम भूमिका का पता चलने के पीछे बड़ी रोचक कथा है। 1953 में तब 27 साल का अमेरिकन युवक हेनरी मोलाइसन। सात साल की उम्र में साइकिल एक्सीडेन्ट के बाद से मिरगी के दौरे आने लगे थे। पहले हलके दौरे पड़ते थे पर 16 साल की उम्र के बाद तीव्र और गंभीर, जो बेहाल करने की स्थिति में पहुंच गए। दवाएं बेअसर। न्यूरो सर्जन के पास पहुंचे। परीक्षण से पता चला कि मिरगी का उद्वेलन केन्द्र दोनों ओर के हिप्पोकेम्पस में थे। असहनीय दौरों से छुटकारा देने के लिए आपरेषन किया गया। सर में सामने दो छेद किए गये और दोनो ओर के एमेग्डेलोइड न्युक्लियस और हिप्पोकेम्पस का आगे का भाग निकाल दिए गये। मिरगी दौरो से तो निजात मिली लेकिन उनके व्यक्तित्व व व्यवहार में अजीब परिवर्तन आ गया। खाना-पीना, चलना-फिरना, बोलना-बतलाना सभी षारीरिक क्रियाएं यथावत। मानसिक रूप से चैतन्य-चोकस, बुद्धिमता भी ठीक। लेकिन एक अजीब सी कमी आ गई- नया कुछ भी याद नहीं रहता। नई कोई स्मृति नहीं बनती। पुरानी बचपन की बाते, घटनाये यथावत याद, हाल का कुछ भी याद नहीं, बात, षक्ल, घटना – कुछ भी याद नहीं रहता। आप उससे मिले, आपने अपना नाम बताया, परिचय किया, कुछ बात की। आप से ध्यान हटा, बाथरूम गए, लौटते ही पूछा आप कौन? नई षारीरिक क्रिया, जैसे नया खेल, सीखने में कोइ बाधा नहीं। खेल याद, खेलना याद, लेकिन खेलना कब सीखा उसकी याद नहीं। न्यूरोसाईंटिस्ट्स के गहन अध्यन का केन्द्र बन गए। विष्वविद्यालयों के सैकड़ो वैज्ञानिकों ने उनका परीक्षण अध्ययन किया। उसी से उजागर हुआ तत्कालिक स्मृति, दीर्घकालिक स्मृति, अल्पकालिक स्मृति को दीर्घकालिक बनाने में हिप्पोकेम्पस की भूमिका। अनुसंधान हुए और स्मृति विज्ञान की पूरी विधा विकसित हुई। हिप्पोकेम्पस के विलक्षण क्रिया कलापों की जानकारी मिली। आष्चर्य तो यह है कि हेनरी 1953 में आपरेषन के बाद नया कुछ भी याद न रहने की स्थिति के साथ 53 वर्ष जिया।
परिवेषीय स्मृतिः तत्कालिक परिवेष में अपनी स्थिति, रास्ते, दिषा आदि का ज्ञान व स्मृति संकलन में हिप्पोकेम्पस की भूमिका होती है। ज्ञानेन्द्रियों से आये परिवेषीय संवेदो से बनने वाला मानसिक मानचित्र बनने की प्रक्रिया होती है, स्मृति संकलन अलग होता है। यही कारण है कि हिप्पोकेम्पस के क्षतिग्रस्त रोगी को परिवेष में विचरण में असुविधा होती है, नये मुकाम, रास्ते याद नहीं रहते, भूल जाता है, खो जाता है।
अपने होने का अहसास और बृह्माण्ड में अपनी स्थिति के अहसास का आधार हिप्पोकेम्पस जनित स्मृतियां ही हैं।
डाॅ.श्रीगोपाल काबरा
मोबाइलः 8003516198

Be business partner with Fotocons
Be business partner with Fotocons

Dr Shree Gopal Kabra

Content Writer at Baat Apne Desh Ki

Dr Shree Gopal Kabra is a passionate writer who shares insights and knowledge about various topics on Baat Apne Desh Ki.

Comments ( 0)

Join the conversation and share your thoughts

No comments yet

Be the first to share your thoughts!