नवराष्ट्रवाद : भावना की 5G स्पीड वाला देशप्रेम

नवराष्ट्रवाद बड़ा विचित्र जीव है साहब। पहले जमाने में राष्ट्रवाद ऐसा घरेलू प्राणी था, जैसे घर का गाय-बैल—शांत, सहनशील, ज़रूरत पड़ने पर खेत जोतने वाला। लेकिन आजकल जो नवराष्ट्रवाद पैदा हुआ है, वह हाई-ब्रीड नस्ल का है—देशप्रेम कम, उछल-कूद ज़्यादा। इसका पेट मोबाइल के डेटा पैक से चलता है और दिमाग ट्रेंडिंग हैशटैग से। पहले लोग देश से प्रेम करते थे, अब प्रेम करने का वीडियो बनाकर अपलोड करते हैं ताकि राष्ट्र भी देखे और पड़ोसी भी।

नवराष्ट्रवाद का असली मज़ा तब आता है जब कोई साधारण-सी बात कह दो—जैसे, “चाय थोड़ी फीकी है।” बस, सामने वाला अपने भीतर का सैनिक निकाल लेता है—“देश की चाय में समस्या? मतलब आप किसी और देश की चाय पीते हैं? कहीं…?” और फिर शक का ऐसा रास्ता खुलता है कि आप जानें या न जानें, आपकी कप चाय की जड़ें तक दुश्मन देश में खोज ली जाती हैं। पहले लोग चाय में शक्कर कम होने पर घर की बहू को दोष देते थे, अब पूरा भू-राजनीतिक संकट घोषित हो जाता है।

आजकल नवराष्ट्रवादी ऐसे दौड़ते-भागते हैं जैसे देश की सीमाएँ उनकी छत पर टंगी हों और हवा का झोंका भी आए तो उसे ड्रोन समझकर नीचे छिप जाते हैं। राष्ट्रप्रेम का ऐसा जोश पहले कभी नहीं देखा गया—जरा-सा सवाल पूछ दिया तो सामने वाला डेढ़ सेकंड में परसाई जी के ‘नारियल फोड़’ अंदाज़ में जवाब देता है, “सवाल? आप? इस समय? किसके इशारे पर?” गाँव में भी, शहर में भी, दफ़्तर में भी, हलवाई की दुकान पर भी… हर जगह ऐसा लगता है जैसे हर व्यक्ति को तत्काल मातृभूमि के ‘कस्टमर केयर सेंटर’ का एम्बेसडर बना दिया गया हो।

अब तो हालत ये है कि अगर कोई बोले “सब्ज़ियाँ महँगी हो गईं”, तो नवराष्ट्रवादी तुरंत पाँच किलो भावुकता तौल कर दे देता है—“यह देशहित में योगदान है। राष्ट्रनिर्माण की थाली में हरी सब्ज़ियाँ महँगी हों तो क्या हुआ? भावना तो सस्ती है!” महँगाई पर इतना सुंदर तर्क सुनकर तो अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर भी कक्षा छोड़ दें।

नवराष्ट्रवादी का दिमाग दो सेकंड में गर्म होता है और तीन सेकंड में ठंडा। लेकिन देशप्रेम का तापमान हमेशा ‘उबलते बिष्कोश’ जैसा रहता है। ऐसे लोग बहस किसी भी विषय पर शुरू करें—चाहे रेलवे का टाइम-टेबल हो या गली की कुत्ता-जनसंख्या—आख़िर में बात राष्ट्र की सुरक्षा, राष्ट्र का गौरव, राष्ट्र की सीमाएँ, राष्ट्र की अस्मिता और राष्ट्र की ‘इज्ज़त’ तक पहुँचती ही पहुँचती है। परसाई जी होते तो कहते, “देश की इज्ज़त ऐसी चीज़ हो गई है जिसे कोई भी उठाकर कहीं भी लटका दे।”

सोशल मीडिया ने राष्ट्रवाद को जितना पकाया है, उतना धूप ने कभी आमों को नहीं पकाया । वहाँ कोई कह दे कि “नेटवर्क नहीं आ रहा”, तो तुरन्त जवाब आता है—“देश का नेटवर्क खराब कहकर आप किसकी भाषा बोल रहे हैं? ये तो देशद्रोह का साइलेंट मोड है!” नवराष्ट्रवादी के लिए नेटवर्क जाना मतलब राष्ट्र भावना की लाइफलाइन पर सीधा आघात।

नवराष्ट्रवाद की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह उन लोगों को भी देशभक्त साबित कर देता है जो सुबह से शाम तक किसी काम के नहीं होते। घर में आटा न गूँथें, लेकिन देश के कूटनीतिक विषयों पर फ़ौरन सलाह दे देंगे—“सरकार को ऐसा करना चाहिए था।” पूछो कि “ऐसा क्यों?” तो जवाब मिलेगा—“तुम पूछ कौन हो?” ये न पूछें कि उनके कहने से क्या फायदा होगा, वे इस बात से प्रसन्न हैं कि कहने भर से उन्हें नीति आयोग का अनौपचारिक सलाहकार मान लिया गया है।

और कमाल की बात ये कि नवराष्ट्रवाद जितना ऊँची आवाज़ में बोला जाए उतना बढ़िया लगता है। परसाई जी लिख गए थे—“हमारे यहाँ विचार नहीं, शोरगुल पहले पहुँचता है।” तो भैया, नवराष्ट्रवादी आवाज़ है—विचार बाद में कहीं खो जाता है। सवाल पूछना, तर्क करना, सोच लेना—ये सब पुराने जमाने की बातें हैं। अभी देशप्रेम की नई परिभाषा है—“चिल्लाओ, ताकि सबको पता चले कि तुम शांत नहीं हो।”

कुल मिलाकर नवराष्ट्रवाद एक ऐसा आधुनिक भाव है जिसमें देशप्रेम वह चीज़ है जिसे दिल में नहीं, टाइमलाइन में रखा जाता है। जहाँ तिरंगा लहराने से ज़्यादा ज़रूरी है, यह घोषित करना कि आपने तिरंगा लहराया। जहाँ राष्ट्रभक्ति व्यक्तिगत अनुभूति नहीं, पोस्ट करने लायक कंटेंट बन चुकी है। और अगर कभी गलती से आप शांत बैठे दिख गए, तो कोई ज़रूर आकर पूछ लेगा—“कुछ हुआ क्या? आज देश से प्रेम नहीं कर रहे?”

यह नवराष्ट्रवाद है साहब—
भावनाओं की ऐसी तेज़ आँच पर पकता हुआ देशप्रेम,
जिसमें बाकी मुद्दे भाप बनकर उड़ जाते हैं
और बच जाती है सिर्फ आवाज़—
जो दूर से सुनने पर बड़ी राष्ट्रवादी लगती है
और पास जाकर देखने पर…
बस खोखली आवाज ही लगती है।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

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डॉ मुकेश 'असीमित'

डॉ मुकेश 'असीमित'

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी,…

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान पिन कोड -३२२२०१ मेल आई डी -thefocusunlimited€@gmail.com पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से ) काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से  काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से  अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से  –गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से  प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से  देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित  सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ”

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