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महर्षि वाल्मीकि नदी के तट पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखकर द्रवित होते हैं।

क्रौंच पक्षी और वाल्मीकि: संवेदना से जन्मा साहित्य

महर्षि वाल्मीकि और क्रौंच पक्षी का ऐतिहासिक प्रसंग संस्कृत साहित्य में भावनात्मक संवेदना का महत्व कालिदास की काव्य कृतियों का मूल्य और समकालीन साहित्य साहित्य…

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A romantic, abstract painting of a couple embracing in gentle rain under a moody sky. Each raindrop glows like liquid poetry, symbolizing the tender emotions, new hopes, and the enduring beauty of love expressed in every droplet.

बरसात की बूंदे -कविता-रचना

बारिश की धीमी बूँदें जैसे प्रेम पत्र हों, जो धरती पर उतरते ही एक गीत बन जाएं। डॉ. मुकेश असीमित की कविता “बरसात की बूंदे”…

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An abstract painting of a woman standing under a tree during monsoon, as glowing raindrops fall around her like burning stars. The sky is blue and red, reflecting longing and sorrow. Flowers bloom nearby, but the woman looks distant, symbolizing waiting for her beloved who hasn’t come.

ये बारिश की बूंदे-हिंदी कविता

बारिश की हर बूंद, प्रतीक्षा की तपिश से दहकती है। पेड़-पत्ते जवां हैं, बगिया महकी है, लेकिन प्रेमी नहीं आया। बूंदें अब फूल नहीं, अंगारे…

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"एक व्यंग्यात्मक चित्र जिसमें सरकारी राहतकर्मी दूरबीन लेकर बाढ़ में तैरते लोगों को निर्देश दे रहे हैं। एक हेलिकॉप्टर राहत सामग्री गिरा रहा है, नीचे मगरमच्छ लोगों के घरों में घुस चुके हैं, और बैकग्राउंड में ‘हर घर नल-जल’ योजना का पोस्टर पानी में बह रहा है। मंत्रीजी मंच पर प्रेस को संबोधित कर रहे हैं, पोस्टर और माइक के पीछे से झाँकते हुए।"

बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें-हास्य व्यंग्य रचना

बाढ़ आई नहीं कि सरकारी महकमें ‘आपदा प्रबंधन’ में ऐसे सक्रिय हो गए जैसे ‘मनौती’ पूरी हो गई हो। नदी उफनी नहीं कि पोस्टर लग…

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A book cover of "गिरने में क्या हर्ज़ है" held in soft daylight, with an expressive image symbolizing satire, and a pen beside it. Background shows a desk, signifying literary thought and critique.

गिरने में क्या हर्ज़ है-किताब समीक्षा-प्रभात गोश्वामी

डॉ. मुकेश असीमित का व्यंग्य संग्रह ‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ न केवल भाषा की रवानगी दिखाता है, बल्कि विसंगतियों की गहरी पड़ताल भी करता…

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एक रंगीन मंच पर बुज़ुर्ग सेठजी, माला पहने, गाय को चारा डालते हुए दिखाए गए हैं। पीछे होर्डिंग पर लिखा है “समाजसेवी राम भरोसा जी का जन्मोत्सव।” मंच पर माइक, बैनर और भीड़ जुटाने के लिए बुलाए गए कुछ लोग बैठे हैं। एक कोने में मास्टर साहब प्रकाश डालने को तैयार हैं, जबकि मुनीम भोजन का संकेत दे रहा है।

जीवन पर प्रकाश डालिए-हास्य व्यंग्य रचना

सेठजी को अब ‘सेठ’ होने से संतोष नहीं, उन्हें ‘समाजसेवी’ भी बनना है—वो भी बिना समाज की सेवा किए! अखबार, होर्डिंग, माला और माइक की…

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स्वतंत्रता के शेष प्रश्न | एक सवाल करती कविता | Dr. Mukesh Aseemit

“स्वतंत्रता के शेष रहे प्रश्न”— डॉ. मुकेश असीमित

क्या आज़ादी सिर्फ कैलेंडर की छुट्टी बनकर रह गई है? डॉ. मुकेश असीमित द्वारा स्वरचित और स्वरांजलि में प्रस्तुत यह समकालीन कविता “स्वतंत्रता के शेष…

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अभिषेक बच्चन एक साधारण धोती-कुर्ता पहने व्यक्ति के रूप में घाट पर बैठे हैं, पीछे हल्का धुंधलका और गंगा किनारे का दृश्य। पास में बच्चा बल्लू खड़ा है, और दोनों के बीच एक भावुक संवाद चल रहा है। दृश्य में कहीं भी कुंभ जैसी भीड़ या संत नहीं दिखते, जिससे दृश्य अधूरा प्रतीत होता है।

कालीधर लापता — एक आधी-अधूरी भावुकता की खोज-फ़िल्म समीक्षा

कालीधर लापता में कुंभ मेला बनारस के घाटों तक सिमट गया, अल्ज़ाइमर से पीड़ित किरदार अंग्रेज़ी बोलने लगा, और एक मासूम बच्चा शराब का इंतज़ाम…

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A comic-style train scene showing a medical student hiding nervously during a ticketless train ride, while a ticket checker enters from the opposite end. A notice about fines for ticketless travel is visible in the background.

मेरी बे-टिकट रेल यात्रा-यात्रा संस्मरण

हॉस्टल की ‘थ्रिल भरी’ दुनिया से निकली एक रोमांचक रेल यात्रा की कहानी, जहाँ एक मेडिकल छात्र पुरानी आदतों के नशे में बिना टिकट कोटा…

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