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एक कार्टून चित्र जिसमें एक उल्लू सोने की परात थामे अमीरों के महलों की LED रोशनी में उड़ता हुआ दिख रहा है, नीचे एक आम आदमी खाली वॉलेट लिए दीये के पास बैठा है। दृश्य में दिवाली की रोशनी, पर व्यंग्य का अंधकार झलक रहा है।

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके…

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“धनतेरस नहीं, आरोग्य दीपोत्सव — धन्वंतरि के अमृत का असली अर्थ”

धनतेरस नहीं, आरोग्य दीपोत्सव — धन्वंतरि के अमृत का असली अर्थ

धनतेरस को केवल खरीददारी का पर्व नहीं, बल्कि आरोग्य दीपोत्सव के रूप में मनाने का संदेश देता यह आलेख बताता है कि धन्वंतरि देव स्वास्थ्य,…

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सूर्य की प्रथम किरणों में शाखा मैदान में खड़े स्वयंसेवक, जिनके पीछे खुली पुस्तकों, पन्नों और डिजिटल प्रतीकों (ई-पुस्तकें, स्क्रीन, पर्चे) का समावेश दिखता है—जो संघ-साहित्य की परंपरा से लेकर आधुनिक संवाद तक की निरंतरता को दर्शा रहा है।

संघ-साहित्य की विरासत, विचार की निरंतरता और आधुनिक भारत में उसकी वैचारिक प्रासंगिकता

संघ-साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा की जीवंत साधना है। यह परंपरा के मौन और आधुनिकता के संवाद के बीच बहने…

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एक रेखाचित्र जिसमें आरएसएस की शाखा में स्वयंसेवक सूर्य की रोशनी में प्रार्थना की मुद्रा में खड़े हैं; पीछे खुले मैदान में किताबों, पम्फलेट्स और पत्रिकाओं के प्रतीक हवा में उड़ते हुए दिख रहे हैं, मानो विचारों का प्रवाह समय में बह रहा हो।

संघ-साहित्य: शब्दों में अनुशासन, विचारों में संवाद

संघ-साहित्य केवल प्रचार का उपकरण नहीं, बल्कि विचार की निरंतरता का प्रमाण है। यह शाखाओं से निकलकर पुस्तकों, पत्रिकाओं और डिजिटल संवादों में प्रवाहित होती…

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कार्टून चित्र में एक व्यंग्यात्मक दृश्य: मंच पर नेता लोग बयानों के बम फोड़ रहे हैं, न्यायाधीश आत्मावलोकन का दीप जलाए बैठे हैं, और नागरिक कानों में रुई डालकर प्रदूषण से बच रहे हैं। ऊपर पटाखों की जगह “लोकतंत्र ज़िंदाबाद” और “सेवा का उजाला” लिखे बैनर लहराते हैं।

शुभ लाभ-फटूकड़ियां – 2025

दीपावली की यह व्यंग्यात्मक ‘फटूकड़ियां 2025’ केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति, न्याय और समाज की मानसिकता पर तीखा हास्य है। लेखक…

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An abstract minimalist illustration showing the contrast between Indian literature’s soulful depth and the distant world of Western literary recognition, separated by the invisible wall of translation and cultural dialogue.

नोबेल, भारतीय लेखक और वैश्विक संवाद की सीमाएँ

“भारतीय साहित्य में गहराई की कमी नहीं, पर संवाद और अनुवाद की दीवार उसे वैश्विक कानों तक पहुँचने नहीं देती। नोबेल से बड़ा है वह…

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एक हास्य व्यंग्य कार्टून जिसमें एक आधुनिक दंपत्ति अपने कुत्ते टॉमी को गोद में लेकर सेल्फी ले रहा है, पीछे घर का ए.सी. चल रहा है, डॉग-स्पा के पोस्टर लगे हैं, और टेबल पर डॉग केक रखा है। मजदूर खिड़की के बाहर पसीने में तर हैं — दृश्य में वर्गीय और भावनात्मक विडंबना झलकती है।

पालतू कुत्ता — इंसान का आख़िरी विकास चरण

अब मनुष्य “सामाजिक प्राणी” से “पालतू प्राणी” में विकसित हो चुका है। पट्टा अब कुत्ते के गले में नहीं, बल्कि उसकी ईएमआई और सोशल मीडिया…

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एक साधारण रेखाचित्र जिसमें केंद्र में ध्यानमग्न व्यक्ति की आकृति हो — उसके चारों ओर छह गोलाकार परतें: 1️⃣ तर्क (Justice – न्याय) — प्रकाश की किरण जैसी। 2️⃣ तत्व (Vaisheshika – वैशेषिक) — परमाणुओं के प्रतीक बिंदु। 3️⃣ चेतना (Sankhya – सांख्य) — अर्ध खुली आँखें, भीतर दृष्टि। 4️⃣ साधना (Yoga – योग) — शांत श्वास का लयबद्ध प्रवाह। 5️⃣ कर्म (Mimamsa – मीमांसा) — हाथ जोड़ते हुए कर्मशील आकृति। 6️⃣ एकत्व (Vedanta – वेदांत) — ऊपरी आभामंडल में विलय होती ऊर्जा। रंग: मृदु सुनहरा, हल्का नीला और मिट्टी का टोन; कोई टेक्स्ट नहीं।

भारतीय दर्शनशास्त्र: जब प्रश्न व्यवस्था माँगते हैं — आत्मबोध से विश्वबोध तक

भारतीय दर्शन उस अनूठी यात्रा का नाम है जो व्यक्ति के “मैं” से शुरू होकर “हम” तक पहुँचती है। न्याय बुद्धि को कसौटी देता है,…

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“ध्यानमग्न मानव आकृति जिसके हृदय से प्रकाश की तरंगें निकलकर ब्रह्मांड में फैल रही हैं — आत्मबोध से विश्वबोध तक की यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र।”

आत्मबोध से विश्वबोध तक — चेतना की वह यात्रा जो मनुष्य को ‘मैं’ से ‘हम’ बनाती है

“जब मनुष्य अपने भीतर के ‘मैं’ से जागता है, तभी उसके बाहर का ‘हम’ जन्म लेता है। आत्मबोध से विश्वबोध की यह यात्रा केवल ध्यान…

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