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कोविड-19 वायरस से मृत्यु के विश्वव्यापी बेबुनियाद आंकड़े

कोविड-19 वायरस से मृत्यु के विश्वव्यापी बेबुनियाद आंकड़े

कोविड-19 वायरस पोजिटिव मृत्यु के विश्वव्यापी आंकड़े जो बेबुनियाद भय पैदा करते हैं।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
अखबारों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर कोविड-19 वायरस (कोरोना) पोजिटिव लोगों में होने वाली मृत्यु की संख्या भयभीत करती है। हर रोज, हर समय वही आंकड़े। लगता है, जैसे सारे विश्व में कोविड-19 से ही मौतें हो रही हैं। कोरोना पोजिटिव में मृत्यु होना क्या कोरोना से ही मृत्यु होना होता है? रोगी को अनेक गंभीर रोग और विकार होते हैं। उनमें से कौनसा मृत्यु का प्रमुख कारण बना, विधिवत् विश्लेषण कर ही इसका आकलन किया जाता है, और ‘कॉज ऑफ डैथ’ रिपोर्ट किया जाता है। हर कोरोना पोजिटिव में मृत्यु कोरोना संक्रमण से नहीं होती।
व्यवस्था को यह अधिकार होता है कि किसी भी संक्रामक रोग को ‘नोटिफायेबल’ करार दे दे। ऐसे में हर चिकित्सक और चिकित्सा संस्थान को इसे रिपोर्ट करना अनिवार्य होता है। जैसे हमारे देश में स्वाइन फ्लू, एच आई वी, डेंगू आदि को रिपोर्ट करना अनिवार्य है। कोरोना को विश्व भर में नोटिफायेबल करार दिया गया है। हर कोरोना पोजिटिव केस, मरने वाला और न मरने वाला दोनों, रिपोर्ट किये जाते हैं। यह संक्रमण का फैलाव और विस्तार आकने के लिए किया जाता है।
कॉज आफ डैथ सर्टिफिकेट का एक अंतरराष्ट्रीय, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित प्रारूप होता है। इसमें तीन भाग होते हैं – पहला, अंडरलाईंग कंडीशन दैट रिजल्टेड इनटू डैथ (अंतिम कंडीशन या व्याधि); दूसरा, एन्टीसिडेन्ट कंडीशन (पूर्ववर्ती व्याधियां) और तीसरी, एसोसियेटेड कंडीश्सन्स (सह व्याधियां)। मसलन, मरीज को संक्रमण हुआ, एच आई वी था, साथ में डायाबेटीज भी। एच आई वी संक्रमित व्यक्ति में वायरस उन श्वेत रक्त कोशिकाओं को खत्म कर देता है जो इम्यूनिटी के लिए आवश्यक है। फलस्वरूप उसका शरीर किसी भी प्रकार के संक्रमण को रोक नहीं पाता, संक्रमण घातक होता है। यही एड्स है, इस रोग की नियति। साथ ही डायबेटीज इसमें सहायक होती है। अंतरराष्ट्रीय निर्धारित नियमों के अनुसार इस में कॉज आफ डैथ (प्रमुख) एच आई वी माना जाता है। संक्रमण तो एच आई वी की कॉम्प्लीकेशन है। संक्रमण और डायाबेटीज दोनों को कंट्रीब्यूटरी – सहायक कॉज आफ डैथ माना जाता है। इसी प्रकार कैंसर में इम्यूनिटी गिरने पर संक्रमण होकर मृत्यु होती है, साथ ही अन्य व्याधियां भी होती है। काज आफ डैथ कैंसर ही माना जाता है। गंभीर हृदय रोग, किडनी, लिवर आदि रोगों में अक्सर अंत में संक्रमण से मौत होती है। संक्रमण/सेप्सिस, को कॉम्पलीकेशन मानते हैं, द कॉज आफ डैथ नहीं। अगर ऐसा कोई पूर्ववर्ती (एन्टीसीडेन्ट) रोग नहीं होता है तभी संक्रमण को प्रमुख कॉज ऑफ डैथ माना जाता है। कोरोना पोजिटिव केसेज में कितनों में ऐसा था, रिपोर्ट नहीं किया जाता। अधिकांश पोजिटिव केसेज में कारोना संक्रमण मृत्यु का कारण नहीं होता।
कॉम्लीकेशन के अतिरिक्त एक और कंडीशन होती है जिसमें अंतिम व्याधि को मृत्यु का कारण नहीं माना जाता। इसे गंभीर रोग की सीक्वॅल (नियति) कहते हैं। हर क्रोनिक (पुराने, दीर्घकालिक) रोग की प्रगति अमूमन निर्धारित होती है। रोग की प्रगति में कौन कौन सी नईं व्याधिया उत्पन्न होंगी, सामने आयेंगी, ज्ञात होता है। मसलन एलकोहोलिक (शराब जनित) हेपेटाईटिस में सिरोसिस लिवर होना – ईसोफेजियल वेरीसेस बनना – वेरीसेस का फटना- खून की उल्टी होना और मौत। शराब सेवन से धीरे धीरे लिवर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती है और लिवर जड़ तंतुओं से भर जाता है। फलस्वरूप आंतों से आने वाला रक्त लिवर के पार नहीं जा पाता और आहार नली (ईसोफेगस) की रक्त शिराओं में चला जाता है, जिनके फटने पर रोगी की रक्तस्राव से मृत्यु हो जाती है। सिरोसिस – वेरीसेस (रक्त से भरी शिराओं का गुच्छा) – रक्त स्राव, एलकोहोलिक हेपेटाईटिस की सीक्वॅल (नियति) माना जाता है। मृत्यु का कारण रक्त स्राव नहीं, शराब जनित एलकोहोलिक हपेटाईटिस माना जाता है और अंतरराष्ट्रीय नियमानुसार रिपोर्ट किया जाता है। इसी तरह प्रोस्टेट के बढने या अन्य किसी व्याधि से पेशाब में रुकावट के कारण अंततः किडनी इन्फेक्शन और किडनी फेलियोर से मृत्यु होने पर पेशाब में रुकावट के कारण को ही मृत्यु का कारण माना जाता है न कि किडनी फेलियोर। किसी भी रोग में होने वाली काम्प्लीकेशन या सीक्वॅल को मृत्यु का कारण नहीं करार दिया जाता। संक्रमण, डायाबेटीज, हाईपरटेंशन आदि सहायक कॉज ऑफ डैथ होते हैं।
जब भी किसी गंभीर बीमारी के कारण शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है और शरीर में रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता नहीं रहती, परिवेश में स्थित रोगाणु संक्रमण करते हैं। जो भी रोगाणु या विषाणु रोगी के परिवेश में होता है, उसी से संक्रमण होता है। संक्रमण रोगाणु विशेष के कारण नहीं, तत्कालीन शारीरिक परिस्थिति के कारण होता है। रोगाणु कोई भी हो सकता है। मसलन अगर मरीज भर्ती है तो अस्पताल के घातक रोगाणु, घर पर है तो घर के रोगाणु। आज हर बड़े अस्पताल में अंतःस्थिति में संक्रमण होता है, लेकिन मृत्यु का कारण हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, लिवर, किडनी, स्वांस रोग होता है। कुछ रोगियों में संक्रमण मृत्यु का सीधा कारण होता है, जैसे स्वाइन फ्लू, डेंगू, वायरल हेपेटाईटिस, मस्तिष्क ज्वर आदि। संक्रमण से मृत्यु और संक्रमण होने पर मृत्यु अलग अलग होती है। दोनों के लिए चिकित्सकीय उपचार और सेवा की व्यवस्था भी अलग होती है।
दुर्भाग्य से देश में 70 साल बाद भी मृत्यु के आकलन की सुचारू व्यवस्था नहीं है। न ही कॉज आफ डैथ सर्टिफिकेट विधिवत भरे जातें हैं, न ही इनके रिपार्ट करने की बाध्यता है। डैथ सर्टिफिकेशन में मात्र खाना पूर्ति होती है। अधिकांश में तो हृदय गति रुकना ही कॉज ऑफ डेथ लिखा जाता है। सर्टिफिकेशन ऑफ डेथ को ही कॉज ऑफ डैथ सर्टिफिकेशन मान लिया जाता है। ऐसे में सरकार द्वारा संकलित किये गये रोग विशेष में मौत के आंकड़ों का कोई ठोस आधार नहीं होता। श्मशान के परिपत्र में लिखवाये गये मौत के कारण विश्वसनीय नहीं होते।
कोरोना महामारी को लेकर चिकित्सा के क्षेत्र में काफी कुछ तीव्र गति से व्यवस्थित हुआ है। इस जागरूकता का लाभ उठा कर अगर मृत्यु के सर्टिफिकेशन, संकलन, विश्लेषण और रिपोर्टिंग की भी व्यवस्था हो जाये तो वस्तुस्थिति आधारित प्लानिंग और दीर्घकालिक सुधार के आसार बनेंगे। डब्लू एच ओ की गाइडलाइन्स के अनुरूप व्यवस्था की जानी चाहिए।
कोरोना के आंकड़े अगर उचित रूप से विश्लेषित कर के देखें तो भयाक्रांत होने की जरूरत नहीं होगी। भय के माहौल में कोरोना से मुकाबला करना पीड़ा दायक होगा। इसके विक्रराल रूप लेने की आशंका टल गई है। हम सजग और सहज रूप में कोरोना से लड़ने में सक्षम हैं। सहज रूप से इसके साथ जी कर ही हम इस पर नियंत्रण कर पायेंगे। कोरोना पोजिटिव व्यक्ति अधिकांशतः स्वस्थ होते हैं, स्वस्थ रहते हैं। उनमें कोरोना से लड़ने की क्षमता आ जाती है। आ रही है। हमें सजग रहना है, असहज नहीं।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा

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