कंजूस मक्खीचूस-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' November 10, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments कंजूस लोग धन को संग्रह करते हैं, उपभोग नहीं। मगर यह भी कहना होगा कि ये लुटेरों और सूदखोरों से फिर भी भले हैं—क्योंकि कम… Spread the love
पालतू कुत्ता — इंसान का आख़िरी विकास चरण डॉ मुकेश 'असीमित' October 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments अब मनुष्य “सामाजिक प्राणी” से “पालतू प्राणी” में विकसित हो चुका है। पट्टा अब कुत्ते के गले में नहीं, बल्कि उसकी ईएमआई और सोशल मीडिया… Spread the love
काश दीवारें बोल उठतीं डॉ मुकेश 'असीमित' September 15, 2025 हिंदी कविता 2 Comments एक धनाढ्य व्यक्ति, जिसने माँ के लिए महल जैसा घर बनाया था, आज बेसुध विलाप कर रहा है। माँ की हल्की करवट पर जाग जाने… Spread the love
राजभाषा, ज्ञान-व्यवस्था और डिजिटल युग में हिंदी की आगे की राह डॉ मुकेश 'असीमित' September 14, 2025 हिंदी लेख 0 Comments हिंदी का भविष्य केवल भावनाओं से तय नहीं होगा, बल्कि छह खानों में इसकी ताक़त और चुनौतियाँ दिखती हैं—संस्कृति, व्यापार, न्याय, शिक्षा, मीडिया और सद्भाव।… Spread the love
हिंदी: उद्भव, विकास और “भाषा” की मनुष्यता डॉ मुकेश 'असीमित' September 14, 2025 हिंदी लेख 0 Comments भाषा केवल संचार का औज़ार नहीं, बल्कि मनुष्यता की आत्मा है। संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश और फिर हिंदी तक की यात्रा हमारे सांस्कृतिक विकास की… Spread the love
वैचारिक आज़ादी और हिंदी की अस्मिता डॉ मुकेश 'असीमित' September 14, 2025 हिंदी लेख 0 Comments 1947 की आज़ादी ने हमें शासन से मुक्त किया, पर मानसिक गुलामी अब भी जारी है। अंग्रेज़ी बोलना प्रतिष्ठा, हिंदी बोलना हीनता क्यों माना जाए?… Spread the love
कुण्डलियों की विरासत : महादेव प्रसाद ‘प्रेमी’ का संग्रह Mahadev Prashad Premi September 4, 2025 Book Review 3 Comments यह संग्रह महादेव प्रसाद ‘प्रेमी’ की कुण्डलियों का संकलन है, जिसे डॉ. मुकेश असीमित ने संपादित व प्रस्तुत किया है। इसमें प्रत्येक कुण्डली के साथ… Spread the love
मैं और मेरा मोटापा – एक प्रेमकथा डॉ मुकेश 'असीमित' August 23, 2025 हास्य रचनाएं 5 Comments “मैं और मेरा मोटापा – एक प्रेमकथा” में तोंद और इंसान का रिश्ता मोहब्बत जैसा दिखाया गया है। पड़ोसी शर्मा जी की खीझ, रिश्तेदारों की… Spread the love
रक्षा सूत्र का प्रण-कविता रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 9, 2025 हिंदी कविता 1 Comment रक्षा सूत्र का संकल्प सिर्फ परंपरा नहीं, यह भय के अंधेरों में जलती प्रतिज्ञा की मशाल है। नाज़ुक धागे में बंधा विश्वास, समाज की दरारों… Spread the love
रेवड़ी की सिसकियां-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 2, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “रेवड़ी की सिसकियां” एक व्यंग्यात्मक संवाद है उस ‘जनकल्याणकारी नीति’ की आत्मा से, जिसे अब राजनैतिक मुफ्तखोरी की देवी बना दिया गया है। लेख में… Spread the love