एक चिट्ठी भारत माँ के नाम Neha Jain August 14, 2025 Blogs 2 Comments भारत माँ को लिखी बेटी की भावनात्मक चिट्ठी, जिसमें अतीत के गौरवशाली भारत और वर्तमान की विडंबनाओं का तुलनात्मक चित्रण है। वीरता, सांस्कृतिक सौहार्द और… Spread the love
साठा सो पाठा-व्यंग्य रचना Vivek Ranjan Shreevastav August 14, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments साठ के बाद ‘रिटायर’ नहीं, ‘री-फायर’ होना चाहिए—ये दुनिया के पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू और खोमनेई साबित कर चुके हैं। अनुभव, जिद और आदतों का… Spread the love
आदमी और कुत्ते की आवारगी-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 13, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments ह व्यंग्य इंसान और कुत्ते की आवारगी के बीच की महीन रेखा को तोड़ता है। अदालत के आदेश से कुत्तों को शेल्टर में डालने का… Spread the love
लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 9, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments रक्षा बंधन पर्व का नया संस्करण—भ्रष्टाचार और रिश्वत का भाई-बहन का पवित्र रिश्ता। सत्ता और विपक्ष दोनों पंडाल में, ₹2000 की नोटों की साड़ी पहने… Spread the love
बजट और बसंत : एक राग, कई रंग डॉ मुकेश 'असीमित' August 6, 2025 व्यंग रचनाएं 1 Comment बजट और बसंत का यह राग अब प्रकृति से नहीं, सत्ता की चौंखट से संचालित होता है। सत्ता पक्ष ढोल-ताशे के साथ लोकतंत्र के मंडप… Spread the love
हारे हुए प्रत्याशी की हाल-ए-सूरत-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments चुनाव हारने के बाद नेताजी के चेहरे की मुस्कान स्थायी उदासी में बदल गई। कार्यकर्ता सांत्वनाकार बन चुके हैं, बासी बर्फी पर मक्खियाँ भिनभिना रही… Spread the love
रेवड़ी की सिसकियां-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 2, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “रेवड़ी की सिसकियां” एक व्यंग्यात्मक संवाद है उस ‘जनकल्याणकारी नीति’ की आत्मा से, जिसे अब राजनैतिक मुफ्तखोरी की देवी बना दिया गया है। लेख में… Spread the love
मेरी बात हो गई है ऊपर-व्यंग्य रचना Pradeep Audichya July 31, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments नेता जी ने बचपन में ही तय कर लिया था कि वह सिर्फ नेता बनेंगे। अब जनसेवा के नाम पर वह चाय की दुकानों पर… Spread the love
संस्था का स्वयंवर: ‘योग्यता’ नहीं, ‘जुगाड़’ की वरमाला! डॉ मुकेश 'असीमित' July 30, 2025 व्यंग रचनाएं 6 Comments संस्था अब कोई विचारशील मंच नहीं, एक शर्मीली दुल्हन बन चुकी है, जिसका स्वयंवर हर दो साल बाद होता है। यहां वरमाला योग्यताओं पर नहीं,… Spread the love
वोट से विष तक : नागों का लोकतांत्रिक सफर डॉ मुकेश 'असीमित' July 29, 2025 व्यंग रचनाएं 6 Comments यह रचना नाग पंचमी के बहाने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। इसमें नाग रूपी नेताओं की तुलना असली साँपों से करते हुए बताया गया… Spread the love