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Tag: व्यंग्य

"भारत माँ की एक प्रतीकात्मक छवि, आँखों में आँसू, हाथ में मुरझाता तिरंगा, पृष्ठभूमि का एक हिस्सा गौरवशाली अतीत दर्शाता और दूसरा हिस्सा आधुनिक पतन और अव्यवस्था का चित्रण करता हुआ।"

एक चिट्ठी भारत माँ के नाम

भारत माँ को लिखी बेटी की भावनात्मक चिट्ठी, जिसमें अतीत के गौरवशाली भारत और वर्तमान की विडंबनाओं का तुलनात्मक चित्रण है। वीरता, सांस्कृतिक सौहार्द और…

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व्यंग्यात्मक कार्टून जिसमें दुनिया के वरिष्ठ नेता—पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू, खोमनेई—हाथ में ताश के पत्तों की जगह देशों के नक्शे और स्टीयरिंग पकड़े हैं, और मंच पर खड़े होकर जोश में दुनिया की दिशा तय कर रहे हैं, जबकि दर्शक हतप्रभ हैं।

साठा सो पाठा-व्यंग्य रचना

साठ के बाद ‘रिटायर’ नहीं, ‘री-फायर’ होना चाहिए—ये दुनिया के पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू और खोमनेई साबित कर चुके हैं। अनुभव, जिद और आदतों का…

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व्यंग्यात्मक लेख जिसमें इंसान और कुत्ते की आवारगी की तुलना की गई है, अदालत के आदेश, शेल्टर, राजनीति और सामाजिक विडंबनाओं के संदर्भ में। हास्य और कटाक्ष के साथ दिखाया गया है कि इंसान का ‘कुत्तापन’ कुत्तों से भी खतरनाक है।

आदमी और कुत्ते की आवारगी-व्यंग्य रचना

ह व्यंग्य इंसान और कुत्ते की आवारगी के बीच की महीन रेखा को तोड़ता है। अदालत के आदेश से कुत्तों को शेल्टर में डालने का…

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"व्यंग्यात्मक रेखाचित्र – भ्रष्टाचार को साँप-चेहरे वाले व्यक्ति के रूप में, रिश्वत को ₹2000 के नोटों की साड़ी पहने नागिन के रूप में दिखाया गया है, जो राखी बाँध रही है, और नेता नकदी के लिफ़ाफ़े लिए खड़े हैं, मंच पर ‘लोकतंत्र रक्षा बंधन पर्व’ लिखा है।"

लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना

रक्षा बंधन पर्व का नया संस्करण—भ्रष्टाचार और रिश्वत का भाई-बहन का पवित्र रिश्ता। सत्ता और विपक्ष दोनों पंडाल में, ₹2000 की नोटों की साड़ी पहने…

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एक विडंबनापूर्ण दृश्य जिसमें लोकतंत्र की सड़ी हुई गलियों में बजट का राग अलापा जा रहा है; आम आदमी और मध्यमवर्गीय जनता इस राजनैतिक तमाशे में अलग-अलग रोल निभा रही है — कोई चटनी को आशीर्वाद समझ रहा है, तो कोई भूख से तड़प कर ग़ज़ल गा रहा है।

बजट और बसंत : एक राग, कई रंग

बजट और बसंत का यह राग अब प्रकृति से नहीं, सत्ता की चौंखट से संचालित होता है। सत्ता पक्ष ढोल-ताशे के साथ लोकतंत्र के मंडप…

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हार के बाद हताश नेता, कुर्सी पर ढहे हुए, चेहरे पर स्थायी उदासी, पोस्टर में झूठी जीत की घोषणा, बासी बर्फी पर मंडराती मक्खियाँ, और पीछे भैंस के तबेले में टिकट वापसी की प्रतीकात्मक राजनीतिक व्यथा।

हारे हुए प्रत्याशी की हाल-ए-सूरत-व्यंग्य रचना

चुनाव हारने के बाद नेताजी के चेहरे की मुस्कान स्थायी उदासी में बदल गई। कार्यकर्ता सांत्वनाकार बन चुके हैं, बासी बर्फी पर मक्खियाँ भिनभिना रही…

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एक करेक्चर चित्र जिसमें एक वृद्धा जैसी "रेवड़ी देवी" घूंघट में लिपटी हैं, आंखों में आंसू, हाथ में घोषणाओं के पोस्टर — "फ्री बिजली", "फ्री पानी", "फ्री वाई-फाई" — चारों ओर नेता उन्हें मंचों से उछालते दिख रहे हैं, भीड़ ताली बजा रही है, और एक कोना अंधकारमय है जहां मेहनतकश किसान और मजदूर थके हुए बैठे हैं।

रेवड़ी की सिसकियां-व्यंग्य रचना

“रेवड़ी की सिसकियां” एक व्यंग्यात्मक संवाद है उस ‘जनकल्याणकारी नीति’ की आत्मा से, जिसे अब राजनैतिक मुफ्तखोरी की देवी बना दिया गया है। लेख में…

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संस्था के स्वयंवर में योग्यता नहीं, जुगाड़ के सहारे दूल्हों की भीड़, हर कोई पहुंच और सिफारिश से वरमाला हासिल करने को आतुर।

संस्था का स्वयंवर: ‘योग्यता’ नहीं, ‘जुगाड़’ की वरमाला!

संस्था अब कोई विचारशील मंच नहीं, एक शर्मीली दुल्हन बन चुकी है, जिसका स्वयंवर हर दो साल बाद होता है। यहां वरमाला योग्यताओं पर नहीं,…

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एक व्यंग्यात्मक चित्र जिसमें एक नाग दूध के कटोरे के सामने बैठा है, आस-पास सूट-बूट पहने नेतागण नाग की पूजा कर रहे हैं और जनता टैक्स रूपी दूध से कटोरा भर रही है। पीछे पोस्टर पर लिखा है — "लोकतंत्र में नागों की जय!"

वोट से विष तक : नागों का लोकतांत्रिक सफर

यह रचना नाग पंचमी के बहाने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। इसमें नाग रूपी नेताओं की तुलना असली साँपों से करते हुए बताया गया…

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