कहते है रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा भी रखना, जो सीख भले ही कड़वी देता हो पर तकलीफ में मरहम भी बनता है
कुछ ऐसे ही रिश्तो की खाती मीठी बातो को कविता के माध्यम से पिरोया है
‘रिश्ते
लोभ और स्वारथ वश लोग,
रिस्ते नाते तोड लेते हैं,
अंत में परिणाम को पाकर,
पछता भी लेते हैं
मिट्टी का वर्तन,
और परिवार जोडने की कीमत ,
वो ही समझते हैं,
तोडने वाले तो तोडा ही करते हैं ।
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