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सामवेद—नाद ब्रह्म, ध्वनि से समाधि तक

तारों भरे आकाश में OM की तरंगें फैलती हुईं; सात चमकते सुर नक्षत्रों की तरह तैर रहे हैं; एक ध्यानमग्न उद्गाता यज्ञाग्नि के पास गा रहा है; नदी संगीत की पाँच रेखाओं में बदलती है; मंदिर की घंटियाँ तरंगाकार प्रकाश बनकर वातावरण में घुलती हैं—समग्र दृश्य में रहस्यमय, सौम्य, और आध्यात्मिक आभा।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

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