समोसे का सार्वभौमिक सत्य

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 29, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“समोसा सिर्फ नाश्ता नहीं—भारतीय समाज, राजनीति और प्रेमकथाओं का सबसे स्थायी त्रिकोण है। डॉक्टर से लेकर दफ़्तर और दाम्पत्य तक, हर मोड़ पर यह तला-भुना फल अपना प्रभाव दिखाता है। बर्गर रोए या बाबू सोए—पर समोसा आए तो सब जग जाएं! यही है समोसे का सार्वभौमिक सत्य।”

सत्यजीत रे: वह आदमी जिसने सिनेमा की आँखों में आत्मा भर दी

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 29, 2025 Cinema Review 0

सत्यजीत रे केवल निर्देशक नहीं थे—एक दर्शन, एक दृष्टि, एक शांत चमत्कार। उनकी फिल्मों ने सिनेमा को कहानी से मनुष्य बना दिया और दुनिया को नया देखने की कला सिखाई।

पार्टी’: एक बंगले में कैद पूरा समाज

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 28, 2025 Cinema Review 0

"गोविंद निहलानी की ‘पार्टी’ सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, उच्चवर्गीय बौद्धिकता का एक्स-रे है। चमकते बंगले में इकट्ठा लोग साहित्य से ज़्यादा एक-दूसरे की पॉलिश चमकाते हैं। अनुपस्थित कवि अमृत की परछाईं पूरे माहौल पर भारी है, और उसका एनकाउंटर इस भीड़ की संवेदनहीनता को नंगा कर देता है।

पुरुष सूक्त और सृष्टि–चिन्तन : पर्यवेक्षक की चेतना में जन्मा ब्रह्मांड

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 27, 2025 Darshan Shastra Philosophy 0

“पुरुष सूक्त हमें बताता है कि ब्रह्मांड कोई जड़ मशीन नहीं, बल्कि एक ऐसे प्रेक्षक की चेतना में जागता हुआ दृश्य है, जिसके ‘सहस्र सिर’ अनगिनत जीवों की आँखों से दुनिया को देख रहे हैं।” “जैसे ही प्रेक्षक देखता है, संभावनाएँ ठोस रूप ले लेती हैं — यही वह दार्शनिक सेतु है जो क्वांटम भौतिकी और संख्य दर्शन को जोड़ता है।” “वेदांत का पुरूष कहता है — ब्रह्मांड 25% दृश्य, 75% अदृश्य है; और यह अदृश्यता ही चेतना का विशाल क्षेत्र है जहाँ से प्रकृति अपनी अभिव्यक्ति पाती है।” “सृष्टि तब जन्म लेती है जब चेतना प्रकृति को ‘देखती’ है — वही क्षण है जहाँ विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म एक बिंदु बनकर खड़े हो जाते हैं।”

हिरण्यगर्भ का रहस्य : सृष्टि से पहले के अंधकार में चमकती एक स्वर्ण-बूँद

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 27, 2025 Darshan Shastra Philosophy 0

“जब कुछ भी नहीं था—न आकाश, न पृथ्वी—तब भी एक चमकता बीज था, ‘हिरण्यगर्भ’। यही वह आदिम स्वर्ण-कोष है, जहाँ ब्रह्मांड समय और स्थान बनने से पहले ही संभावनाओं की तरह छिपा पड़ा था, और जहाँ से सृष्टि की पहली धड़कन जन्मी।”

भारतीय सिनेमा जगत — जाने कहाँ गए वो दिन

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 26, 2025 Blogs 0

“सिनेमाघर कभी मनोरंजन का देवालय था, जहाँ चाय-कुल्फी की आवाजें, तंबाकू की पिचकारियाँ, आगे की सीटों की रुई निकालने की परंपरा और इंटरवल का महाभारत—सब मिलकर एक सामूहिक उत्सव बनाते थे। वह जमाना गया, जब फिल्में हमें हमारी रियलिटी से कुछ पल उड़ा ले जाती थीं।”

मोबाइल और लाइन का लोकतंत्र : एक व्यंग्यात्मक संस्मरण

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 26, 2025 Blogs 0

“इस देश में लाइनें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए आदमी ने मोबाइल को जीवन-संगिनी बना लिया है। टिकट विंडो की कतार हो या दिवाली की सेल—हर जगह कंपनियाँ आपको चॉकलेट, केक, EMI, लोन, ओवरड्राफ्ट और भविष्य-कथन तक परोसने के लिए बेताब हैं। आदमी लाइन में खड़ा है… लेकिन उसकी दुनिया मोबाइल की स्क्रीन में बह रही है।”

धरम पाजी-फ़िर नहीं आएँगे ऐसे “ही-मैन

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 25, 2025 Cinema Review 0

धर्मेंद्र सिर्फ़ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहाती मासूमियत, पंजाबी दिलेरी और रोमांटिक चमक का चलता-फिरता रूपक थे। वीरू की टंकी, खेतों की पगडंडियाँ, शोले की गूंज और फ़िल्मी किस्से—सब आज उनकी स्मृति बनकर रह गए हैं। पर कलाकार कभी नहीं मरते, धर्मेंद्र भी नहीं। वे हर मुस्कान में लौट आएँगे।

युद्ध का नित नया बदलता चेहरा

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 25, 2025 Foreign Affair 0

युद्ध का इतिहास दरअसल मनुष्य नहीं, तकनीक की कहानी है। नरमार की भोथरी गदा से लेकर ड्रोन, AI, सैटेलाइट और हाइपरसोनिक मिसाइलों तक—हर दौर में विजेता वही बना जिसने दूर से, सस्ते में और सुरक्षित प्रहार करने की कला सीख ली। युद्धभूमि बदल चुकी है, हम अब भी पुराने सपनों में अटके हैं।

आप तो बस लिखते रहिए..

डॉ मुकेश 'असीमित' Nov 24, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“आप लिखते हैं तो लोग आपको क्रांतिकारी समझ लेते हैं—खुद रिमोट बदलने से डरते हैं पर क्रांति की बंदूक आपके कंधे पर रखकर चलाना चाहते हैं। यह व्यंग्य उन लोगों का चश्मा है जो चाहते हैं—बगावत आपकी हो, जोखिम आपका हो… और तमाशा उनका।”