डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 10, 2025
व्यंग रचनाएं
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मुद्दा कोई साधारण प्राणी नहीं — यह राजनीति की चुहिया है, जिसे वक्त आने पर पिंजरे से निकालकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है। झूठे वायदों की हवा और घोषणाओं के पानी से यह फूली-फली जाती है, और फिर चुनाव आते ही इसका खेल शुरू होता है। नेता डुगडुगी बजाते हैं, जनता तालियाँ पीटती है — और “मुद्दा” लोकतंत्र का मुख्य पात्र बनकर सबका मनोरंजन करता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 10, 2025
व्यंग रचनाएं
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कंजूस लोग धन को संग्रह करते हैं, उपभोग नहीं। मगर यह भी कहना होगा कि ये लुटेरों और सूदखोरों से फिर भी भले हैं—क्योंकि कम से कम किसी का लूट नहीं करते, बस खुद को ही नहीं खिलाते। उनका आदर्श वाक्य है — “चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।”
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जहाँ नेता प्रचार से मशहूर होते हैं, वहाँ कंजूस बिना खर्च के ही चर्चा में रहते हैं। मोहल्ले की चाय की थड़ियों पर उनके नाम के किस्से चलते हैं।
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कहते हैं, ये लोग लंबी उम्र जीते हैं — शायद इसलिए कि ज़िंदगी भी बहुत संभालकर खर्च करते हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 5, 2025
व्यंग रचनाएं
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सड़कों पर “देवता-तोल” का नया युग — जहाँ खतरनाक मोड़ और पुल नहीं, बल्कि चढ़ावे की रसीदें आपकी जान बचाती (या बिगाड़ती) हैं। सरकार टेंडर दे, देवता ठेका ले — वाह री व्यावसायिक भक्ति!
Ram Kumar Joshi
Nov 5, 2025
India Story
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देशभर में बढ़ते सड़क हादसे अब सिर्फ समाचार नहीं, बल्कि हमारी संवेदनहीन व्यवस्था का आईना हैं।
जहाँ नियम पालन करने वाले मरते हैं, और व्यवस्था सिर्फ बयान जारी करती है।
ट्रैफिक पुलिस की आँखें खुली हैं — मगर देखती नहीं।
जब तक जिम्मेदारी सिर्फ फाइलों में रहेगी, सड़कें श्मशान बनती रहेंगी।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 4, 2025
व्यंग रचनाएं
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देवराज इंद्र की सभा के बीच अचानक नारद मुनि माइक्रोफोन लेकर प्रकट होते हैं और देवताओं को बताते हैं कि अब असली अमृतकाल मृत्युलोक में चल रहा है—जहाँ मानव ने देवों से भी बड़ी कला सीख ली है, रूप बदलने की। एक ओर देवता नृत्य और सोमरस में मग्न हैं, तो दूसरी ओर मानव मोबाइल कैमरे से लाशों की तस्वीरें खींचकर “मानवता शर्मसार” का ट्रेंड बना रहा है। व्यंग्यपूर्ण संवादों और पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से यह रचना बताती है कि जब मानवता ही मर जाए, तो अमरत्व भी व्यर्थ है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 4, 2025
आलोचना ,समीक्षा
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“साहित्य के बाजार में आज सबसे सस्ता माल है ‘महानता’। पहले पहचान विचारों से होती थी, अब फॉलोअर्स और लॉन्च-इवेंट से होती है। व्यंग्य अब साधना नहीं, रणनीति बन गया है। व्यवस्था की आलोचना करने वाला अब उसी व्यवस्था का पीआर एजेंट बन बैठा है। असली लेखक कोने में खड़ा है, और मंच पर नकली लेखक चमक रहा है। विरासत अब शाल और शिलालेख में सिमट गई है — सवालों में नहीं। व्यंग्य की परंपरा विरोध में जन्म लेती है, करुणा में जीती है — और उसी करुणा को अब मार्केटिंग ने निगल लिया है।”
Ram Kumar Joshi
Nov 3, 2025
व्यंग रचनाएं
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“He dangled his legs on a high hanger and cursed everyone — from the central government to the department engineer.”
“The British-era bridges stand a hundred years later; the new roads washed away after the warranty ended.”
“If we squeeze corrupt contractors, this land would literally rain money — the real question is who will spend it honestly?”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 3, 2025
India Story
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“कप्तानों से बढ़कर, यह जीत उन सपनों की है जो साथ दौड़ते हैं—एक राग, एक भारत।”
“जब विविध सुर मिलते हैं, जीत का आलाप अपने आप जन्म लेता है—भारत विश्वविजेता।”
“साहस, संयम और संगति—इन्हीं तीन रंगों से तिरंगा ट्रॉफी छू लेता है।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 3, 2025
Blogs
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“If there is any beauty in my speech, it is not mine — it is the gift of tradition and divine grace.”
“Kalidasa’s journey is the transformation of ignorance into illumination, of pride into humility.”
“When Vidyottama said, ‘Asti kashchid vāgviśeṣaḥ,’ she named not a poet, but an eternal principle — that true speech is always born of reverence.”
Ram Kumar Joshi
Nov 3, 2025
व्यंग रचनाएं
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“Rishvat is based on risk” — this new law of modern Indian economics explains it all. Whenever risk rises, the bribe amount inflates proportionally. From the days of Emergency till today, the system has only refined its formula — risk badhao, rate badhao! Dr. Ram Kumar Joshi’s satirical essay turns bureaucracy into a comic battlefield of wit, irony, and bitter realism.