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याद आ रही है जयपुर की वो शाम !

याद आ रही है जयपुर की वो शाम

पंडित की कुल्फी , लाला की पताशी , मुरली का पान , जयपुर वालो के दिल मे ऐसे कई नाम !
संपत की कचोरी , सम्राट का समोसा , मानसरोवर से आते लोग, खाने स्वामी का डोसा !
ब्रजवासी की पताशी से बनती कंवर नगर कि शाम , अनु पान वाले का चॉकलेट वाला पान !
भगत जी के लड्डू , ईश्वर की गजक , मन में उठ रही है हलकी सी कसक!
ट्रांस से माहौल की राजापार्क की शाम , मोमोज , टिक्का , पास्ता , वो कारो में लगते जाम !
नमो चाय पे बैठे ढेरो नौजवान , याद आ रही जयपुर की वो शाम !
रिची रिच का रोल , जगह जगह पर मिलती बेड़ई पुड़ी गोल गोल !
स्टेचू की कॉफी , गुलाब जी की चाय , अंकुरित कचोरी , फिर कैसे रुका जाए !
गम में , खुशी में , नाहरगढ़ पे कुच !
देर रात को तफरी , हाल-ऐ-दिल मत पूछ !
पड़ाव पे टकराते जाने कितने जाम , याद आ रही है जयपुर की वो शाम !
सी स्कीम में उमड़ता , धड़कते दिलो का सैलाब , तरह तरह की मैगी , वो बेफिजूल की बात!
ढूंढ रही है आंखे, वो हुजूम बेमिसाल, वो दोस्तो की महफ़िल , शहर की वो चाल
जयपुर वालो की दिल में ऐसे कई नाम !

याद आ रही है जयपुर की वो शाम !

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CANVAS AND PAPER PRINTS OF DIGITAL ARTWORK
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