बजट और बसंत : एक राग, कई रंग डॉ मुकेश 'असीमित' August 6, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments बजट और बसंत का यह राग अब प्रकृति से नहीं, सत्ता की चौंखट से संचालित होता है। सत्ता पक्ष ढोल-ताशे के साथ लोकतंत्र के मंडप… Spread the love
बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 15, 2025 व्यंग रचनाएं 6 Comments बाढ़ आई नहीं कि सरकारी महकमें ‘आपदा प्रबंधन’ में ऐसे सक्रिय हो गए जैसे ‘मनौती’ पूरी हो गई हो। नदी उफनी नहीं कि पोस्टर लग… Spread the love
गिरने में क्या हर्ज़ है-किताब समीक्षा-प्रभात गोश्वामी डॉ मुकेश 'असीमित' July 15, 2025 Book Review 2 Comments डॉ. मुकेश असीमित का व्यंग्य संग्रह ‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ न केवल भाषा की रवानगी दिखाता है, बल्कि विसंगतियों की गहरी पड़ताल भी करता… Spread the love
जीवन पर प्रकाश डालिए-हास्य व्यंग्य रचना Pradeep Audichya July 14, 2025 व्यंग रचनाएं 4 Comments सेठजी को अब ‘सेठ’ होने से संतोष नहीं, उन्हें ‘समाजसेवी’ भी बनना है—वो भी बिना समाज की सेवा किए! अखबार, होर्डिंग, माला और माइक की… Spread the love
“Roses and Thorns” : मेरी एक नई तीखी-मीठी उड़ान! डॉ मुकेश 'असीमित' April 27, 2025 Blogs 0 Comments Roses and Thorns – a satire bouquet straight from the OT (Operation Theatre) of an orthopedic doctor turned wordsmith. No enlightenment. No “6-pack abs” philosophy.… Spread the love