कर्म गठरिया लाद कर,जग फिर है इन्सान,
जैसा कर वैसा भरे,विधि का यही विधान,
विधि का यही विधान,कर्म से सव कुछ आवै,
दुख से बदले सुख,सभी
विपदा टल जावै,
कर्म करे किस्मत वने,जीवन का यह मर्म,
“प्रेमी”तेरे भाग्य में,तेरा अपना कर्म।
“कुण्डली” 6चरण “कर्म”_हिंदी कविता महादेव “प्रेमी “
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